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________________ पदार्थ विज्ञान क्रियाशील बना हुआ है । यही इस विश्वकी सुन्दरता है । जरा कल्पना तो कर कि यहाँका प्रत्येक पदार्थ आकाशमें चित्रलिखितवत् टिका होता, तू जहाँ खडा है वहां ही सड़ा होता, यह नदी ज्यो की त्यो स्तम्भित होती, और ये वृक्ष भी बिना हिले टुले कूटम्य खडे होते, तो कौन इन पदार्थोंका प्रयोग करता, कोन आज इनका निर्णय करने बैठता, किसका क्या कर्तव्य अकर्तव्य होता और किसे धर्म-अधर्म कहते ? विश्व तथा इसके पदार्थ क्योकि परिवर्तन तथा क्रियाशील हैं इसीलिए कुछ करने धरने की बुद्धि होती है । जहाँ ऐसी बुद्धिहोतो वहाँ ही कर्तव्य अकर्तव्यका प्रश्न होता है, वहाँ ही धर्म-अधर्म की सत्ता होती है । ८ इससर्व कथनपर से यह सिद्धान्त निकला कि पदार्थों के समूहको विश्व कहते हैं | पदार्थ क्योकि हैं इसलिए उन्हे सत् कहते है । पदार्थ क्योकि परिवर्तन तथा क्रियाशील है इसलिए सत् भी परिवर्तन तथा क्रियाशील है । अतः सैद्धान्तिक भाषामे हम सत्का लक्षण ऐसा कर सकते है कि जो परिवर्तन तथा क्रियाशील है वह सत् है । ५ परिवर्तन क्या है ? परिवर्तन व क्रिया दो शब्दोका प्रयोग पहले किया गया । वास्तवमे दोनो ही परिर्वतन हैं । एक परिवर्तन गुणो तथा रूपोका और दूसरा परिवर्तन हे स्थानका । अतः कथन क्रमको सरल करने के लिए दो शब्दोका प्रयोग करनेकी बजाय एक परिवर्तन शब्दका प्रयोग ही पर्याप्त है । वैज्ञानिक लोगोको दृष्टि साधारण लोगोकी भाँति वस्तुके केवल बाह्य रूपको ही देखकर सन्तुष्ट नही हो जाया करती । वह तो उसकी सूक्ष्मतामोमे प्रवेश पाकर सूक्ष्मसे सूक्ष्म सिद्धान्तका 1
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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