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________________ २३८ पदार्थ विज्ञान सकते । इसलिए लोकाकाश उतना ही वड़ा रह गया जितने बड़े कि धर्म तथा अधर्म द्रव्य । वास्तवमे लोकाकाशके कारण धर्म तथा अधर्म द्रव्यका वैसा आकार नही है, परन्तु धर्मं तथा अध द्रव्यके कारण ही लोकाकाशका वैसा आकार है । इन द्रव्योके सीमित आकारके कारण ही जीव तथा पुद्गल लोककी सीमाका उल्लघन करके अलोकमे नही जा सकते । कुछ लोग ऐसा मानते है कि शरीरसे मुक्त हो जानेपर आत्मा सदा ऊपरऊपरको चढ़ता ही चला जाता है और कभी भी ठहरता नही है । अनन्तो आत्माएँ जो आज तक मुक्त हो चुकी हैं वे अब तक भी बराबर ऊपरको ही चली जा रही है । उनके इस चलनेका अन्त कभी न आयेगा क्योकि आकाशका कही भी अन्त नही है । परन्तु उनकी यह धारणा मिथ्या है । लोकाकाशके शिखरपर जहाँ कि धर्म द्रव्यको सीमा आ जाती है, उनका चलना रुक जाता है ओर इस प्रकार सभी मुकात्मायें लोकके शिखरपर स्थित हैं । ५. धर्म द्रव्यको सिद्धि धर्म तथा अधर्म ये दोनो पदार्थ क्योकि बिलकुल अदृष्ट हैं, -इसलिए ऐसी आशंका होने लगती है कि इन द्रव्योको माननेकी कोई आवश्यकता नही । आकाश तो फिर भी किसी न किसी रूपमे देखा जाता है परन्तु ये दोनो द्रव्य किसी भी प्रकार देखे नही जा सकते, क्योकि पहली बात तो यह है कि ये दोनो अमूर्तिक हैं, दूसरी यह है कि लोक-व्यापी होनेके कारण इनकी सीमाएँ प्रतीतिमे नही आती । परन्तु इतनेपर से इनका अभाव नही माना जा सकता, क्योकि यह कोई नियम नही है कि जिन पदार्थोका हम प्रत्यक्ष कर सकें वे ही हैं, उनके अतिरिक्त अन्य नही है । हमारा ज्ञान बहुत अल्प है |
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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