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________________ २१८ पदार्थ विज्ञान है । इन पृथिवियो तथा सागरोमे यथायोग्य मनुष्य, पशु, पक्षी तथा मगर-मच्छ आदि रहते हैं। मध्यलोकको मर्त्यलोक भी कहते है क्योकि यहाँके रहनेवाले मनुष्य आदि सभी मरण-धर्मा हैं। यद्यपि देव भी मरते हैं, परन्तु अत्यधिक दीर्घायु होनेके कारण वे अमर कह दिये जाते है और उनका निवास स्थान जो स्वर्गलोक या उर्ध्वलोक है वह अमरलोक कह दिया जाता है। अधोलोकमे नीचे-नीचे अधिकाधिक दुखके स्थान हैं। इन्हे नरक कहते हैं। ऐसे-ऐसे सात नरक-स्थान कल्पित किये गये हैं। ऊपरसे ज्यो-ज्यो नीचेके नरकोमे जाते हैं त्यो त्यो दु ख अधिक अधिक होता जाता है। प्रत्येक नरकस्थानमे भी असख्यातो पृथिवियाँ हैं, जिनपर नारकी लोग बसते हैं और अपने पूर्वकृत दुष्कर्मोंके फलस्वरूप अनन्त दु.ख भोगते रहते है। ऊर्ध्वलोकमे भी नाभिसे गरदन पर्यन्त अर्थात् वक्षस्थलके स्थान पर १६ विभाग कल्पित किये गये है। इन्हे सोलह स्वर्ग कहते हैं । ज्यो-ज्यो नीचेसे ऊपर ऊपरके स्वर्गमे जाते है त्यो त्यो अधिक-अधिक सुख मिलता जाता है। इन १६ स्वर्गोंसे भी ऊपर गरदनके स्थानमे ९ विभाग किये गये हैं, जिन्हे ग्रेवेयक कहते है। यहाँ भी देव हैं। परन्तु स्वर्गोंमे जिस प्रकार इन्द्र तथा प्रजा आदिका भेद रहता है वैसा यहाँ नही रहता । यहाँ रहनेवाले सभी स्वतन्त्र है अर्थात् अपने अपने इन्द्र हैं, इसलिए इन्हे अहमिन्द्र कहते हैं। 'अहम्' का अर्थ है 'मैं' और इन्द्रका अर्थ है इन्द्र । अर्थात् 'मैं ही अपना इन्द्र हूँ', ऐसा अहमिन्द्रका अर्थ है । ग्रीवासे ऊपर मुख भागमे भी दो विभाग हैं। नीचेवालेका नाम अनुदिश है और ऊपरवालेका नाम अनुत्तर । इनमे हरनेवाले भी अहमिन्द्र ही होते हैं, परन्तु इनकी पदवी ग्रेवेयकवालोसे उत्तरोत्तर ऊँची है । इस सबको स्वर्गलोक या अमरलोक कहते हैं।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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