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________________ २ पदार्थ सामान्य हमने तुझे बताया है कि धर्म एक विज्ञान है, अतः प्रारम्भसे हो हम वैज्ञानिक पद्धतिसे तुझे सब कुछ समझायेंगे। एक वैज्ञानिक कोई भी आविष्कार करनेसे पहले किन्ही पदार्थ-विशेषोके स्वभावका गहनताके साथ अध्ययन करता है । पदार्थकी गहराईमें उतरनेके लिए वह उसका अधिक से अधिक विश्लेषण (analysis) कर डालता है, अर्थात् बुद्धिमे ही उसके खण्ड-खण्ड करके उसमे पायी जानेवाली अनेको शक्तियो तथा स्वभावोकी खोज करता है। तब पीछे अनेक वस्तुओको जोड-तोडकर विचित्र-विचित्र पदार्थोंका आविष्कार करनेमे सफल होता है। उसीप्रकार तुझे भी करना है। जिस विश्वमे तू रह रहा है वह क्या है, जो कुछ भी पसारा यहाँ दिखाई दे रहा है तथा जो कुछ भी यहां नित्य तेरे प्रयोग व व्यवहारमे आ रहा है वह क्या है, यह सब कुछ जाने बिना तू धर्मका आविष्कार न कर सकेगा, क्योकि विश्वके इस सर्व दृश्य पसारेके जोड़-तोडमे हो तेरे कर्तव्य व अकर्तव्यका आविष्कार छिपा हुआ है। ओ ओ । पहले इस विश्वका विश्लेषण कर लें, फिर पीछेसे कर्तव्य अकर्तव्यका निर्णय करेंगे। परन्तु यह बात ध्यानमे रखनी है कि काम आसान नही है। विषय विस्तृत हो जायेगा। इसलिए अरुचि करके इसे बीच में ही न छोड बैठिए । कदाचित् ऐसा समझने लगें कि धर्म सम्बन्धी इस प्रकरणमे, पृथिवी व चाँद सितारोंकी या कोड़े-मकोड़ोकी गणना करनेसे क्या लाभ । ऐसी बुद्धिको प्रवेश न होने दीजिए, क्योकि इसका रहस्य तुम्हे आगे जाकर पता चलेगा। इस पुस्तकमे किसी भी विषयको समझाते हुए दोनो बातो पर दृष्टि रखी गयी है-विषय भी समझ जायें और शास्त्र समझनेकी योग्यता भी उत्पन्न हो जाये। विषयको समझनेके प्रयोजनसे पुस्तकमे आधुनिक तथा सरल भाषाका प्रयोग किया गया है, जो कि एक बच्चा भी समझ सकता है, क्योकि यह आपकी अपनी
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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