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________________ १९० पदार्थ विज्ञान उन पदार्थोंमे भेद दिखाई देता है । जैसे कि पृथिवीमे पृथिवी जातीय परमाणु अधिक हैं और वायुमे वायु जातीय । परन्तु उनकी यह कल्पना ठीक नही है । उसका निराकरण आजका विज्ञान कर रहा है । आज यह बात सर्व समस्त है कि पृथिवी हो या जल या अग्नि या वायु, सभी अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोनके सघाते से बने है, मोर वे अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोन एक ही जातिके होते हैं भिन्न-मिन जातिके नही । इसलिए आज यह सभ्भव है कि लोहेको फाडकर उसमे से अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोनको अलग-अलग कर लिया जाये और उन्हे किसी अन्य विवेष ढगसे मिला देनेपर सोना बना दिया जाये | इसी प्रकार पृथिवीको फाडकर उसके अलैक्ट्रोन तथा प्रोटोनसे जल वायु अथवा अग्नि बनाये जा सकते हैं । इसी प्रकार अग्निवाले अलैक्ट्रोनो व प्रोटोनोसे पृथिवी, जल तथा वायु बनाये जा सकते हैं । उनके लिए पृथक्-पृथक् जातिके परमाणु मानने की आवश्यकता नही रह जाती । अत आजका विज्ञान केवल दो ही परमाणु मानता है । जैन दर्शनकी दृष्टि इस विषय मे कुछ भिन्न प्रकारको है । उसकी दृष्टिमे सर्व परमाणु एक ही जातिके होते हैं । अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोन भी उन्हीकी उपज हैं । पहले बताया जा चुका है प्रत्येक सत् पदार्थ परिणमनशील है । परमाणु भी सत् होनेके कारण परिणमनशील है । भले ही सूक्ष्म होनेके कारण इसका परिणमन प्रतीतिमे न आवे पर प्रतिक्षण होता तो रहता ही है, क्योकि स्वभाव कभी रुक नही सकता । इस परिवर्तन के कारण इनके चारो ही पूर्वोक्त गुणोमे कुछ न कुछ तारतम्य स्वत' आता ही रहता है । अन्य गुणोके तारतम्यसे तो विशेष प्रयोजन नही है, हाँ स्पर्श गुणका तारतम्य विशेष वर्णनीय है ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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