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________________ धर्म क्या है अहा हा । धर्म । 'धर्म कितनी सुन्दर वस्तु है', यह बात भले ही आजका जगत् भूल गया हो, पर यह कैसे भूल सकता है कि जीवन भी कोई चीज़ है । जीवनका सार सुख एवं शान्ति है। इसका कारण वास्तवमे यही है कि सुख एवं शान्ति ही जीवनका स्वभाव है, जिस प्रकार कि जलका स्वभाव शीतल होता है। भले ही अग्निके सयोगके कारण वह गरम हो गया हो परन्तु उसका स्वभाव 'फिर भी शीतल ही रहता है । यह बात इस प्रकार जानी जाती है कि यदि अग्निको हटा दिया जाये तो वह शीतल ही होनेका प्रयत्न करता है, उष्ण रहना नहीं चाहता। शीतलताकी ओर झुकनेका यह उसका स्वतन्त्र प्रयत्न ही उसके शीतल स्वभावको दर्शाता है। इसी प्रकार जीवन भले ही धन, कुटुम्ब आदिके सयोगको प्राप्त होकर वर्तमानमे दुखी व चिन्तित हो रहा हो, परन्तु उसका अन्तरंग प्रयत्न सुखी व शान्त होनेका ही रहता है। जीवनका यह स्वतन्त्र प्रयत्न ही दर्शाता है कि उसका स्वभाव दुःख व चिन्ता नही बल्कि सुख व शान्ति है। जीवनके इस स्वभावका नाम ही धर्म है। -ऐसा जानकर भी कोन धर्मसे विमुख होगा। सुख व शान्तिका सम्बन्ध जीवनसे है। उस जीवनके दो रूप हैं-एक बाह्य और दूसरा अन्तरंग। बाह्य रूप शरीर है और अन्तरग रूप अन्त करण या मन। इसीलिए सुख भी दो प्रकारका
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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