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________________ १६२ पदार्य विज्ञान कपाय अनेक प्रकारकी हैं। परन्तु मुख्यतः चार मानी गयी हैक्रोध, मान, माया, लोभ । इष्ट पदार्थको प्राप्तिमे किसीके द्वारा कोई बाधा उपस्थित हो जानेपर क्रोध आता है। इष्ट पदार्थकी प्राप्ति हो जानेपर अभिमान होता है। इष्ट पदार्थको प्राप्तिके लिए छल होता है, वही माया है। इष्ट पदार्थकी प्राप्ति हो जानेपर उसे टिकाये रखने का भाव लोभ है। ___ इन चारोमे-से क्रोध, माया व लोभके तो कोई भेद नही हैं, पर मानके अनेको भेद हैं, जिनमे आठ मद प्रसिद्ध हैं-कुलमद, जातिमद, रूपमद, बलमद, धनमद, ऐश्वर्यमद, ज्ञानमद तथा तपमद । मेरा पिता बहुत वडा आदमी है ऐसा भाव रखना कुलमद है। इसी प्रकार मेरी माता बडे घरकी है ऐसा जातिमद है। इसी प्रकार 'मै बहुत सुन्दर हूँ, मै बहुत बलवान हूँ, मैं बहुत धनवान् हूँ, मेरी आज्ञा सब मानते हैं इसलिए मैं बहुत ऐश्वर्यवान हूँ, मै बहुत ज्ञानवान् हूँ तथा मैं बहुत तपस्वी हूँ. कौन है जो मेरी बरावरी कर सकता है', ये सब भाव मद या अभिमान कहलाते हैं। चारो कषाय उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। क्रोध सबसे स्थूल है क्योकि वह बाहरमे शरीरको भृकुटी आदिपर-से देखा जा सकता है। मन उसकी अपेक्षा सूक्ष्म है क्योकि यह शरीरकी आकृतिपर-से नही देखा जा सकता, परन्तु उसकी बातोपर से अवश्य जाना जा सकता है। मानी व्यक्ति सदा बहुत बढ-बढकर बातें किया करता है, सदा अपनी प्रशसा तथा दूसरेकी निन्दा किया करता है, अपनी महत्ता तथा दूसरेकी तुच्छता दर्शाया करता है। माया उसकी अपेक्षा भी सूक्ष्म है क्योकि यह बातोपर-से भी जानी नही जा सकती। परन्तु उसके द्वारा कुछ काम किये जानेके पश्चात्,
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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