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________________ १४४ पदार्थ विज्ञान और वह इन्द्रिय-भोगोको भोगनेसे उत्पन्न होता है, परन्तु भीतरी सुख शान्तिस्प है । सुखका विपक्षी दुःख है । वह भी दो प्रकारका है - बाहरी तथा भीतरी । बाहरी दुःख तो शरीरको पीड़ा आदि रूप है और भीतरी दुःख, चिन्ता व व्याकुलता रूप है। बाहरी सुख-दुख तो ज्ञानके द्वारा जाने जाते हैं, और भीतरी सुख-दुख दर्शन के द्वारा देखे जाते हैं या महसूस किये जाते है | यद्यपि जीवमे सुख नामका गुण कहा गया है परन्तु इसका यह अर्थ नही कि जीवमे सुख ही नामका गुण हो दुख न हो, क्योकि ये दोनो ही प्रत्यक्ष देखनेमे आते हैं। फिर भी गुणका नाम सुख रखा गया है दुख नही, और न ही दुख नामका कोई पृथक् गुण बताया गया है । इसका कोई विशेष प्रयोजन है । वह यह कि दुख जीवको उसी समय तक रहता है जिस समय तक कि वह शरीर व अन्त करणके साथ बँधा रहता है । परन्तु उनके वन्धनसे छूटनेपर उसे सुख ही होता है, दुख नही । यहाँ क्योकि चेतन या जीवके गुण बताये जा रहे हैं इसलिए उन्ही गुणोका विचार करना युक्त है जो कि शरीर व अन्त करणसे पृथक् हो जानेपर जीवमे पाये जाते हैं । इसलिए जीवमें सुख नामका ही गुण है दुख नामका नही और वह सुख भी भोगो सम्बन्धी न समझकर शान्ति सम्बन्धी ही समझना । ६. वीर्य वीर्यका अर्थ शक्ति है । प्रत्येक पदार्थमे कोई न कोई शक्ति अवश्य होती है । शक्ति नाम भार सहन करने तथा टिकनेका है । कोई भी पदार्थ जितनी देर तक टिका रह सके, बिगड़े या गले नही, कमज़ोर नही हो, उतनी ही उसकी शक्ति है । जैसे कि स्तम्भकी शक्ति इतनी है कि इतनी भारी दीवारको अपने ऊपर धारण कर लेनेपर भी दबे नहीं, टूटे नही और सैकड़ो वर्षों तक
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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