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________________ पादर्थ विज्ञान दर्शन' है। यह गुण कुछ सूक्ष्म है अत. अन्य प्रकारसे भी इसका लक्षण किया जाता है। आप यदि बहुत अधिक सावधान होकर विचार करें तभी आपको इसकी प्रतीति हो सकती है। आप जब कभी भी किसी एक इन्द्रियसे देखते या जानते हुए उसे छोड़कर किसी अन्यसे देखने या जाननेका उद्यम करते हैं तब एक सूक्ष्म-सा प्रकाश अन्दर ही अन्दर पहली इन्द्रियसे उस दूसरी इन्द्रियकी तरफ दौडकर जाता हुआ प्रतीत होता है। यह काम इतनी जल्दी हो जाता है कि साधारण दृष्टिसे पकडा नही जा सकता। परन्तु गौर करके देखनेका प्रयत्न करें तो अवश्य उसका पता चल जाता है। बस अन्दरमे दौडनेवाला यह क्षणिक प्रकाश ही दर्शन है। ज्ञानका सम्बन्ध क्योकि बाह्य पदार्थोंको इन्द्रियो आदिके द्वारा जाननेसे है, इसलिए वह स्थूल है। परन्तु दर्शनका सम्बन्ध किसी अन्तरंग प्रकाशसे है, इसलिए वह सूक्ष्म है। स्थूल पदार्थको आसानीसे जाना जा सकता है, परन्तु सूक्ष्मको जाननेमे कठिनाई पड़ती है। यही कारण है कि ज्ञानको तो सहज ही सब समझ जाते हैं, परन्तु दर्शनको जाननेमे कुछ कठिनाई पड़ती है। ऊपर दर्शनका लक्षण करनेके लिए जो दृष्टान्त दिये गये हैं वे केवल स्थूल रूपसे उसे समझाने के लिए दिए गये हैं। सूक्ष्म रूपसे बतानेपर उस प्रकार अन्दरमे देखना भी ज्ञान ही है। परन्तु यहाँ उतनी सूक्ष्म वात बतानेसे आप भ्रममे न पड जायें, इसलिए इतना ही समझें कि भीतर झांककर किसी भी विषयको देखनेपर जो अन्दरमे कुछ प्रकाश-सा दिखाई देता है, या एक इन्द्रियसे दूसरी इन्द्रियकी १ वास्तवमे यह ज्ञान ही है, परन्तु प्राथमिक जनोको दर्शन तक पहुचानके लिए उमका अवलम्बन लिया जा रहा है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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