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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष १३५ सक्षिप्त सा सार देकर पाठकजनोको उसकी आवृत्ति करा देना आवश्यक है, ताकि यह उनकी स्मृतिमे ठीक प्रकार बैठ जाये १. जगत्मे दो पदार्थ है- एक जीव, दूसरा जड । जीव अदृष्ट है और जड़ दृष्ट | जीवसे अन्त करणका निर्माण होता है और जड़ से शरीरका | २ शरीरमे रहनेवाला वह अमूर्तिक या अदृष्ट पदार्थ ही जानता तथा देखता है और मृत्यु हो जानेपर शरीरसे निकलकर अन्यत्र चला जाता है। उसके होनेपर ही इन्द्रियाँ जानती हैं, उसके न होनेपर नही । ३. यह जीव शरीरसे निकलकर तुरन्त ही अन्य शरीर धारण कर लेता है । इस प्रकार बराबर पुन पुन, जन्म-मरण करता हुआ अनेको योनियोमे भ्रमण करता रहता है। ४ यद्यपि जीव चेतन है, फिर भी उसके द्वारा धारण किये गये चित्र विचित्र शरीरोके कारण अथवा होनाधिक जानने के साधनोंके आधारपर उसके अनेको भेद-प्रभेद किये जा सकते हैं । ५ जाननेके साघनको इन्द्रिय कहते है । ये इन्द्रियाँ पाँच होती है— स्पर्शन, रसना, घ्राण चक्षु और कर्ण । ६. इन पाँचो इन्द्रियोको क्रमपूर्वक धारण करनेसे जीव भी पांच प्रकारके होते हैं – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय । ७ चेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं -संज्ञी व असज्ञी अर्थात् मनवाले तथा बिना मनवाले । ८. एकेन्द्रि जीव 'स्थावर' कहलाते है और दोसे पाँच इन्द्रिय तकके 'त्रस' कहाते है |
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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