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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष १२३ इस सम्बन्धमे डॉक्टरोकी अपेक्षा जैन दर्शनकारोको दृष्टि बहत अधिक सूक्ष्म है। इसी कारण भोजन शुद्धिके प्रकरणमे ( दे शान्तिपथप्रदर्शन ) अनेको ऐसी वस्तुओको अभक्ष्य बताकर उनके खानेका निषेध किया गया है, जिनके खानेमे आजका मानव हानि नही समझता। १३ चौरासी लाख योनि ___इस प्रकार इन्द्रियोकी अपेक्षा, मनकी अपेक्षा, स-स्थावरकी अपेक्षा, गतियोकी अपेक्षा, षट्कायकी अपेक्षा, सचार तथा निवासस्थानकी अपेक्षा, स्थूलता तथा सूक्ष्मताकी अपेक्षा जीवोके भेद-प्रभेद करके जीव पदार्थकी विस्तृत सृष्टिका परिचय दिया गया। ये भेद इतनेपर ही समाप्त हो जाते हो ऐसा नही है। आगे भी प्रत्येक के अनेक प्रभेद किये जा सकते है । एक पृथ्वीवाला भेद अनेक प्रकार का है-जैसे मिट्टी, पत्थर, तांबा, लोहा सोना इत्यादि । इसमे-से तांबा व लोहा आदि प्रत्येक धातु भी पृथक्-पृथक् अनेक प्रकारकी है । इसी प्रकार जल भी अनेक प्रकारका है, जैसे-कुएँका जल, तालाब व जोहड़का जल, पर्वतके झरनेका जल, वर्षाका जल आदि । इन सब जलोकी प्रकृति भिन्न-भिन्न है। इनमेसे भी प्रत्येक जल अनेक प्रकारका है जैसे कि कुएं का जल ही भिन्न-भिन्न देशोमे भिन्न-भिन्न प्रकृतियो व स्वभाववाला होता है । मेघ, वाष्प, कुहरा आदि भी जलकी जातियाँ हैं। इसी प्रकार अग्नि भी अनेक प्रकार की ही जैसे-इंधनकी अग्नि, काण्डेकी अग्नि, चिनगारी, ज्वाला आदि । वायु भी अनेक प्रकारको है जैसे-साधारण वायु, आक्सीजन, हाइड्रोजन गैस इत्यादि । वनस्पतिके हजारो-लाखो भेद है जिनका बताना कठिन है। कुछ घास जातिकी हैं, कुछ लता जातिकी हैं, कुछ गन्ने या बाँस
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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