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________________ पदार्थ विज्ञान अत. कहा जा सकता है कि उसमे प्रचुर दु.खके साथ-साथ सुखका अश अवश्य विद्यमान है। तियंच गतिमे उस पालतू कुत्तको भी इसी प्रकार कदाचित् दूसरे कुत्तोके साथ लडते हुए, या किसी मनुष्यके प्रति भोकते हुए छोटे-मोटे आघात सहने पड़ते ही हैं । अत. कहा जा सकता है कि उसमे प्रचुर सुखके साथ-साथ कुछ न कुछ दुःखका अंश अवश्य है। इसी प्रकार ठेलेमें जुते हुए उस भैंसको जब कभी भी घरपर जाकर कुछ चारा आदि खानेको या पानी पीनेको मिलता है तव तो वह सुखका अनुभव करता ही है। इसी प्रकार वह गधा और गाय भी कभी-कभी भोजन आदि पानेपर प्रसन्न होते ही है । पक्षी भी भले रात्रिको ठिठुरते रहे हैं पर सवेरा होनेपर आनन्दमे भरकर चहचहाते तथा फुदकते ही है। छोटे-छोटे कोडे भी भोजन आदिकी सामग्री प्राप्त होनेपर प्रसन्न होते ही हैं। वृक्ष तथा लताएँ भी यद्यपि गर्मीक मारे मुरझाकर मरी-मरी हो जाती हैं, परन्तु सवेरेकी ठण्डो-ठण्डी हवा लगनेपर अथवा जड़मे पानी पड़ जानेपर हपके मारे हँस-हँसकर झूमने लगती है। अत. कहा जा सकता है कि तियंचोमे भी प्रचुर दु खके साथ-साथ सुखका अश अवश्य है। इतना होनेपर भी मनुष्य तथा तिथंच दोनो योनियां समान नही कही जा सकती। साधारणत. मनुष्य तियंचोकी अपेक्षा ऊँचे माने जाते हैं । पालतू कुत्तेकी अपेक्षा भी वह दुखी कोढी ऊँचा गिना जाता है। इसका कारण यह है कि मनुष्यके पास विशेष प्रकारको बुद्धि है जो तियंचोको प्राप्त नही है। उस बुद्धिके कारण वह स्वतन्त्रतासे अपने सुखके साधनाको यथा-योग्य प्राप्त कर सकता है, जबकि तियंच पराधीन हैं और अपने सुखके साधनोको स्वय उत्पन्न करना नही जानते हैं। इसी बुद्धिके कारण सिंह
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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