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________________ १०४ पदार्थ विज्ञान प्यास बुझती है अथवा श्वास लिया जाता है, वे स्वयं जीवित हैं तथा मर भी जाते हैं, जैसे कि पानीको यदि अग्निपर रखकर गर्म कर दिया जाये तो वह मर जाता है। पृथिवी, अग्नि, जल, वायु तथा वनस्पति इन पांचोमे-से हमें वनस्पतिमे भयका प्रत्यक्ष होता है, पर वह अपनी रक्षाके लिए भाग नही सकता इसलिए उसे स्थावर कहना उचित है। इसी प्रकार पृथ्वी तथा अग्नि ये दोनो भी अपने स्थानसे अन्यत्र गमन नही कर सकते इसलिए स्थावर हैं। परन्तु जल तथा वायुको कैसे स्थावर कहा जा सकता है, जबकि वे भागते हुए देखे जाते है । सो भाई, वे भागते अवश्य हैं परन्तु भय खाकर भागते हो ऐसा कोई नियम नही। भागना उनका स्वभाव ही है, इसलिए उन्हे भी स्थावर कहनेमे कोई विरोध नही आता । इन पांचोमे वनस्पतिको सभी मतवाले जीव मानते हैं। वैदिक दर्शनकार इसे उद्भिज्ज योनि मानते हैं। अन्य चारको प्रायः अजीव या जड़ माना गया है। परन्तु जैन दर्शनकारने इन्हे भी जो जीव स्वीकार किया है, यह उसकी सूक्ष्म दृष्टिका ही फल है । ८. गतियोकी अपेक्षा जीवके भेद ___ अन्य प्रकारसे भी जीवोंके भेद-प्रमद किये जा सकते है और वे हैं जीवकी चार गतियां या जातियाँ। जीवकी मुख्यत. चार गति मानी गयी हैं-नरक, नियंच, मनुष्य और देव । नारकी जीव अत्यन्त क्रूर प्रकृतिके, अत्यन्त भयानक तथा विकराल आकृतियोके होते हैं । एक दूसरेको मारने-काटनेमे ही उनको सुख मिलता है। वे लोग इस पृथिवीके नीचे किन्ही पाताल लोकोमे रहते हैं । मनुष्यो को छोडकर सभी स्थावर तथा त्रस जीवोकी सृष्टि तिर्यंच कहलाती है। पशु-पक्षी आदि तो तिथंच हैं ही, क्षुद्र कीड़े तथा पृथिवीसे
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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