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________________ जीव पदार्थ विशेष १०१ और पुरुषके हृदयमे स्त्रोके साथ सम्भोग करनेको जो इच्छा उत्पन्न होतो है उसे मैथन कहते हैं। अपने जीवन निर्वाहके लिए सामग्रीका इकट्ठा करना परिग्रह कहलाता है । जिस प्रकार मनुष्यमे ये सब बातें पायी जाती हैं, उसी प्रकार केचुआ, मक्खो, चोटो आदि सभी कीडोमे तथा पशु-पक्षियोमे भी पायी जाती हैं, यह बात प्रत्यक्ष है। इसपर-से यह विश्वास होना कठिन नहो कि द्वोन्द्रियसे लेकर सज्ञो पचेन्द्रिय तकके सभी त्रस जोवोके शरीरोमे जीवत्व अवश्य है। जबतक शरीरमे ये चारो लक्षण पाये जाते हैं तबतक ही हम उस शरीरको जोवित कह सकते हैं। और इन लक्षणो के अभावमें उसे मृत कहते हैं। जिस प्रकार कि मनुष्यके मुरदा शरीरमे ये चारो बातें नही रहती उसी प्रकार कीडो आदिके शरोरोमे भी मरनेके पश्चात् ये बातें देखी नही जा सकती। त्रस जीवोको ही भांति वृक्ष आदि वनस्पतिमे भी ये चारो बातें अवश्य देखो जाती है। जबतक ये चारो बातें देखी जाती हैं तबतक ही वह वृक्ष जीवित समझा जाता है, जैसे कि हरा-भरा वृक्ष या घास आदि । जब इनका अभाव हो जाता है तब उस वनस्पतिका शरीर मरा हुआ समझा जाता हैं, जैसे कि लूंठ या लकडो आदि । वृक्षमे इन चारो बातोको दर्शाता हूँ। वृक्षमे आहार ग्रहणकी इच्छा होती है इसलिए वह अपनी जड़ें पृथ्वीमे दूर तक फैला लेता है और उनके द्वारा जल खीचता है। जिधर अधिक नमी पाता है उधर ही जडें फैलाता है। जहाँ निकटमे ही जल मिल जाता है वहाँ अपनी जडोको अधिक फैलानेकी आवश्यकता नही समझता, परन्तु जहाँ जल बहुत दूर मिलता है वहां अपनी जडें लम्बी बना लेता है। यही कारण है कि रेगिस्तानमें उत्पन्न होनेवाले वृक्षोकी
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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