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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष ५ मनकी अपेक्षा जीवोके भेद पाँच इन्द्रियोके अतिरिक्त एक छठी इन्द्रिय भी है। ये पाँच इन्द्रियाँ तो बाह्य है परन्तु वह छठी इन्द्रिय अन्तरंग है। उसका नाम है मन । यह इन्द्रिय अत्यन्त सूक्ष्म है, अत इसका विशेष परिचय यहां दिया जाना शक्य नही है। यहां केवल इतना ही कहा जा सकता है कि तर्क-वितर्क या सकल्प-विकल्प करनेकी अन्तरग शक्तिका नाम मन है। अप्रत्यक्ष होनेके कारण इसे इन्द्रिय न कहकर नो-इन्द्रिय कहा जाता है। नो का अर्थ है किंचित् अर्थात् कुछ-कुछ। अप्रत्यक्ष होनेके कारण यह इन्द्रिय भले न हो परन्तु विचारनेपर इसका कार्य कुछ-कुछ प्रत्यक्ष होता है, अत इसे कुछ कुछ इन्द्रिय कहना न्याय है। इस प्रकारकी शक्ति सभी जीवोमे नही पायी जाती। एकसे लेकर चार इन्द्रिय तकके जीवोमे तो यह शक्ति बिलकुल है ही नहीं। पचेन्द्रिय जोवोमे भी कुछ । ऐसे है जिनके पास कि यह शक्ति नही है। जैसे कि कुछ विशेष प्रकारकी मछलियाँ, छिपकली, कुछ विशेष प्रकारके सर्प आदि । पशु-पक्षी यद्यपि प्रायः इस शक्तिसे युक्त देखे जाते हैं, परन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जिनमे यह शक्ति नही पायी जाती। यद्यपि ऐसे कोई पशु-पक्षी प्रायः देखनेमे नही आते तदपि शास्त्रोमे उनका उल्लेख पाया जाता है। इस शक्ति युक्त जीवोको समनस्क या सज्ञी कहा जाता है और इससे रहितको अमनस्क या असज्ञी। यहाँ शका हो सकती है कि विचारनेकी शक्ति तो चीटी आदिकमे भी पायी हो जाती है, फिर उन्हे असज्ञी क्यो कहा (गया ? सो ठीक है। विचारनेकी शक्ति उनमे है अवश्य परन्तु विशेष प्रकारकी जो शक्ति यहाँ कहना इष्ट है, वह इनमे नही पायी जाती। विचारणा-शक्ति दो प्रकारकी है-एक साधारण, दूसरी विशेष । साधारण विचारणा केवल अपने हित-अहित अथवा
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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