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________________ ४ जीव पदार्थ सामान्य १४. जीवोंकी गणना अब प्रश्न यह होता है कि यदि पृथक्-पृथक् शरीरमे पृथक्पृथक् जीव हैं, अर्थात् शरीरोकी भांति जीव भी अनेक हैं, तो उनकी गणना क्या है, अर्थात् इस सारे विश्वमे वे कितने हैं। इस प्रश्नका उत्तर सहज है, कि वे उतने ही हैं जितने कि शरीर । बल्कि उनसे भी कुछ अधिक हैं, क्योकि शरीरधारी जीवोके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी जीव हैं जो मुक्त हो चुके है अर्थात् शरीर और अन्त.. करण आदिके बन्धनोसे छूट चुके है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जीव अनन्त हैं अर्थात् गणनातीत हैं । १५. पुनर्जन्म तथा उसको सिद्धि यह जीव इन चौरासी लाख योनियोमे नित्य ही जन्म-मरण करता हुआ बराबर घूमा करता है। जैसा-जैसा कर्म करता है, जैसे-जैसे संस्कार लेकर मरता है, उस-उसके अनुसार ही किसी योनि तथा शरीरको धारण करके जन्मता है। पुनर्जन्मका यह सिद्धान्त भारतीय सस्कृतिका मूल आधार है। भारत के सभी दर्शनकार इसे स्वीकार करते हैं, परन्तु मुस्लिम तथा ईसाई मत-जैसे विदेशी दर्शन इस सिद्धान्तको स्वीकार नहीं करते और न ही आजका भौतिक युग इसे स्वीकार करता है। प्रत्यक्ष ऐसा-सा प्रतीत होता है कि जन्मसे मरण पर्यन्त जो कुछ दिखाई देता है, बस उतना मात्र ही सत्य है। जन्मसे पहले क्या था और मृत्युके पश्चात् में कहां हूंगा यह कौन जानता है, और इसलिए पुनर्जन्मका सिद्धान्त कल्पना मात्र है। ___ भैया | इस भ्रमको दूर कर । वास्तवमे ऐसा नहीं है। तेरी १ इस धारणाका कारण केवल यही है कि तुझे अपनी इन्द्रियोपर __ तो विश्वास है, परन्तु अप्रत्यक्ष पर तुझे विश्वास नही है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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