SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधारण इन दोनोको ठीक-ठीक प्रकारसे न तो जान पाता है और न ही देख पाता है। कुछ लोगोका ऐसा विश्वास है कि आजका विज्ञान विश्वको उन तपस्वी ऋषि-मुनियोंसे कही अधिक जानता है, जिन्होने पूर्वकालमे अपने सात्त्विक आचरणसे और धर्म-कर्मके उपदेशोंसे समाजका मार्गदर्शन किया है। लेकिन वस्तु-स्थितिका अवलोकन करनेपर यह बात तथ्यपूर्ण नही रह जाती । यह ठीक है कि आजका विज्ञान बहुत कुछ जानता है परन्तु उसका वह सारा ज्ञान अभी अत्यन्त सीमित है । यह बात तबतक समझमे नही पा पायेगी जबतक कि उसपर सूक्ष्म दृष्टिसे विचार नही कर लिया जाता । सच तो यह है कि आजके विज्ञानकी दृष्टि अन्यन्त स्थूल है। यह केवल विश्वको बाहरसे ही पढनेमे समर्थ है । इसके अन्तस्तलमे प्रवेग कर उस गहनतम सूक्ष्म तत्त्वको खोज निकालना निश्चित ही इसकी सामर्थ्यसे परे है। उपर्युक्त बात को ध्यान रखते हुए मुझे यह आवश्यक लगा कि जैनदर्शनके सिद्धान्तोके आधारपर जीवादि पदार्थोके स्वरूपका विवेचन कर जीवन और जगत् की उन सूक्ष्म गहनताओ की और गृढ रहस्योको सामान्य जानकारी प्रस्तुत की जाय । प्रस्तुत पुस्तकलेखनका मेरा एक मात्र यही प्रयोजन है। विवेचनकी शैली प्रवचनकी रखी गयी है जिससे साधारण पाठक या श्रोता को भी यह विषय सहज बोधगम्य बन सके। छात्रोके लिए भी यह पुस्तक बहुत उपयोगी सिद्ध होगो ऐसा मेरा विश्वास है। -जिनेन्द्र वर्णी भाद्रपद कृष्णा २ सवत २०३३ ११ अगस्त, १९७६ ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy