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________________ नियमसार २२३ चाहिए। भावार्थ-- पृथिवी, जल, अग्नि और वायुका जो रूप अपने ज्ञानमें आता है वह अनेक परमाणुओंके मेलसे बना हुआ स्कंध है। इस स्कंधके बननेमें जो परमाणु मूल कारण हैं वे कारणपरमाणु कहलाते हैं। स्निग्ध और रूक्ष गुणके कारण परमाणु परस्परमें मिलकर स्कंध बनते हैं। जब उनमें स्निग्धता और रूक्ष गुणोंका नाश होता है तब विघटन होता है। इस तरह विघटन होते होते जो अंतिम अंश -- अविभाज्य अंश रह जाता है वह कार्य परमाणु कहलाता है।।२५।। परमाणुका लक्षण अत्तादि अत्तमझं, अत्तंतं णेव इंदिए गेज्झं। अविभागी जं दव्वं, परमाणू तं वियाणाहि ।।२६।। आपही जिसका आदि है, आप ही जिसका मध्य है, आप ही जिसका अंत है, जो इंद्रियोंके द्वारा ग्रहणमें नहीं आता तथा जिसका दूसरा विभाग नहीं हो सकता उसे परमाणु द्रव्य जानो। भावार्थ -- परमाणु एकप्रदेशी होनेसे उसमें आदि, मध्य और अंतका विभाग नहीं होता तथा उतना सूक्ष्म परिणमन है कि वह इंद्रियोंके द्वारा ग्राह्य नहीं होता। इसी तरह एकप्रदेशी होनेसे उसमें विभाग नहीं हो पाता है।।२६।। परमाणुके स्वभावगुण और विभावगुणका वर्णन एयरसरूवगंधं, दोफासं तं हवे सहावगुणं। विहावगुणमिदि भणिदं, जिणसमये सव्वपयडत्तं ।।२७।। एक रस, एक रूप, एक गंध और दो स्पर्शोंसे युक्त जो परमाणु है वह स्वभावगुणवाला है और द्व्यणुक आदि स्कंध दशामें अनेक रस, अनेक रूप, अनेक गंध और अनेक स्पर्शवाला जो परमाणु है वह जिनशासनमें सर्वप्रकट रूपसे विभाव गुणवाला है ऐसा कहा गया है। भावार्थ -- जो परमाणु स्कंध दशासे विघटित होकर एकप्रदेशीपनको प्राप्त हुआ है उसमें खट्टा, मीठा, कडुआ, कषायला और चिर्परा इन पाँच रसोंमेंसे कोई एक रस होता है, श्वेत, पीत, नील, लाल और कृष्ण इन पाँच वर्गों में से कोई एक वर्ण होता है, सुगंध दुर्गंध इन दो गंधोंमेंसे कोई एक गंध होता है और शीत उष्णसे कोई एक तथा स्निग्ध रूक्षमेंसे कोई एक इस प्रकार दो स्पर्श होते हैं। कर्कश, मृदु, गुरु और लघु ये चार स्पर्श आपेक्षिक होनेसे परमाणु विवक्षित नहीं है। इस प्रकार पाँच गुणोंसे युक्त परमाणु स्वभाव गुणवाला परमाणु कहा गया है, परंतु यही परमाणु जब स्कंध दशामें अनेक रस, अनेक रूप, अनेक गंध और अनेक स्पर्शोंसे युक्त होता है तब विभावगुण वाला कहा गया है। तात्पर्य यह है कि परमाणु स्वभाव पुद्गल है और स्कंध विभावपुद्गल है।।२७ ।।
SR No.009556
Book TitleNiyam Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size7 MB
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