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________________ २३२ कुदकुद-भारता रखते हुए समस्त परिग्रहोंका जो त्याग है, चारित्रके भारको धारण करनेवाले मुनिका वह पाँचवाँ परिग्रहत्याग महाव्रत कहा गया है।।६० ।। ईर्यासमितिका स्वरूप पासुगमग्गेण दिवा, अवलोगंतो जुगप्पमाणं हि। गच्छइ पुरदो समणो, इरियासमिदी हवे तस्स ।।१।। जो साधु दिनमें प्रासुक -- जीवजंतुररहित मार्गसे युगप्रमाण -- चार हाथ प्रमाण भूमिको देखता हुआ आगे चलता है उसके ईर्या समिति होती है।।६१।।। भाषासमितिका स्वरूप पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पसंसियं वयणं। परिचत्ता सपरहिदं, भासासमिदी वदंतस्स।।६२।। पैशुन्य - चुगली, हास्य, कर्कश, परनिंदा और आत्मप्रशंसारूप वचनको छोड़कर स्वपर हितकारी वचनको बोलनेवाले साधुके भाषासमिति होती है।।६२ ।। । एषणासमितिका स्वरूप कदकारिदाणुमोदणरहिदं तह पासुगं पसत्थं च । दिण्णं परेण भत्तं, समभुत्ती एसणासमिदी।।६३।। परके द्वारा दिये हुए, कृत कारित अनुमोदनासे रहित, प्रासुक तथा प्रशस्त आहारको ग्रहण करनेवाले साधुके एषणासमिति होती है।।६३।। आदाननिक्षेपण समितिका स्वरूप पोथइकमंडलाइं, गहणविसग्गेस पयतपरिणामो। आदावणणिक्खेवणसमिदी होदित्ति णिद्दिट्ठा।।६४।। ___ पुस्तक तथा कमंडलु आदिको ग्रहण करते समय अथवा रखते समय जो प्रमादरहित परिणाम है वह आदान-निक्षेपण समिति होती है ऐसा कहा गया है।।६४ ।।। . प्रतिष्ठापन समितिका स्वरूप पासुगभूमिपदेसे, गूढे रहिए परोपरोहेण। उच्चारादिच्चागो, पइठासमिदी हवे तस्स।।६५ ।। परकी रुकावटसे रहित, गूढ और प्रासुक भूमिप्रदेशमें जिसके मल आदिकका त्याग हो उसके प्रतिष्ठापन समिति होती है।।६५ ।।
SR No.009556
Book TitleNiyam Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size7 MB
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