SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सात कुंदकुंद-भारती संस्थाका फलटण स्थित श्रुतभंडार तथा ताम्रपत्रोंकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व जैन समाजके कंधोंपर आ गया। सोलापुर तथा कालबादेवी (मुंबई)स्थित ताम्रपत्र वहाँके मंदिरोंमें सुरक्षित हैं, परंतु उनकी देखभाल करनेका उत्तरदायित्व किसी जिम्मेदार व्यक्तिपर नहीं है। उसकी सुरक्षाकी दृष्टिसे भी विचारविमर्श होना आवश्यक है। इन सभी बातोंका विचार कर ग्रंथप्रकाशनका खंडित कार्य पुनः आरंभ हो इस दृष्टिसे फलटण स्थित स्वाध्यायप्रेमी महानुभावोंने पहल कर ११ जनोंकी एक अस्थायी समिति बनाकर श्रुतभंडार व ग्रंथप्रकाशन समितिका पुनर्गठन किया तथा संस्थाके पदसिद्ध अध्यक्ष पूजनीय श्री जिनसेन भट्टारक स्वामी, नांदणी (कोल्हापुर) से मिलकर समितिका कार्य पुनश्च आरंभ करनेके लिए उनसे अनुमति माँगी। संस्थाके संविधान का अवलोकन कर उन्होंने कार्य आरंभ करनेकी अनुमति प्रदान की। तदनुसार प्रकाश्य ग्रंथोंकी सूची बनाकर उनके प्रकाशनार्थ संस्थाके आजीवन सदस्य बनाये जाएँ तथा उन सदस्योंको उपलब्ध ग्रंथ निःशुल्क दिये जायें ऐसा निर्णय किया गया। सदस्यता शुल्क ११०१/- निर्धारित किया गया है। संस्थाके विश्वस्तोंके दायादोंसे मिलकर उनकी अनुमतिसे नया विश्वस्त मंडल १४ अगस्त २००६ को गठित किया गया है। (१) श्री धवल, (२) श्री महाधवल, (३) श्री जयधवल ये ग्रंथ मंदिरोंके लिए निःशुल्क देनेका निर्णय किया गया है। स्वाध्यायप्रेमी जनोंके लिए मंदिरोंके विश्वस्त समितिसे संपर्क स्थापित कर उक्त ग्रंथ प्राप्त करें। (१) श्रावकाचार संग्रह भाग १ से ५, (२) अष्टपाहुड ये ग्रंथ प्रत्येक ६५/- के अल्प मूल्यपर स्वाध्यायप्रेमी जनोंको देनेका भी निर्णय किया गया है। जो व्यक्ति ये ग्रंथ डाकद्वारा प्राप्त करना चाहते हैं वे प्रत्येक १०१/- के हिसाब से प्राप्त कर सकते हैं। । समस्त समाजसे प्रार्थना की जाती है कि अधिकाधिक व्यक्ति संस्थाके सदस्य बनें तथा संस्थाका पुनर्गठन करनेमें सक्रिय सहयोग दें जिससे जिनवाणीका संशोधन, प्रकाशन कार्य पूर्ववत् सुचारु रूपसे आरंभ हो सके। यदि कोई व्यक्ति प्राचीन आर्ष ग्रंथ शास्त्रदान के रूपमें वितरित करना चाहे तो संस्थाकी ओर से उसे संपादन व मुद्रणकार्यके लिए पूरा सहयोग दिया जायेगा। दाताओंके शुभ नाम आगे प्रकाशित होनेवाले ग्रंथोंमें प्रकाशित किये जायेंगे। आजीवन सदस्योंको अब उपलब्ध छह ग्रंथ विनामूल्य दिये जायेंगे। डॉ. जे. पी. गांधी, उपाध्यक्ष, स्वस्तिश्री जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य स्वामी, श्रुतभांडार व ग्रंथप्रकाशन समिति, नादणी (जि. कोल्हापूर) १३२, शुक्रवार पेठ, पदसिद्ध अध्यक्ष, फलटण (जि. सातारा)४१५५२३ प.पू. चा.च. श्री १०८ शांतिसागर दि. जैन जिनवाणी दूरभाष : (०२१६६) २२०८३२ जीर्णोद्धारक संस्था, फलटण.
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy