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________________ सत्तूमित्ते य समा, पसंसणिद्दा अलद्धिलद्धि समा। तणकणए समभावा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।४६।। जो शत्रु और मित्र, प्रशंसा और निंदा, हानि और लाभ, तथा तृण और सुवर्णमें समान भाव रखती है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।।४६।। उत्तममज्झिमगेहे, दारिद्दे ईसरे णिरावेक्खा। सव्वत्थगिहिदपिंडा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।४७।। जहाँ उत्तम और मध्यम घरमें, दरिद्र तथा धनवानमें, कोई भेद नहीं रहता तथा सब जगह आहार ग्रहण किया जाता है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।।४७।। मा णिग्गंथा णिस्संगा, णिम्माणासा अराय णिद्दोसा। णिम्मम णिरहंकारा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।४८।। जो परिग्रहरहित है, स्त्री आदि परपदार्थके संसर्गसे रहित है, मानकषाय और भोग-परिभोगकी आशासे रहित है, दोषसे रहित है, ममतारहित है और अहंकारसे रहित है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।। णिण्णेहा णिल्लोहा, णिम्मोहा णिब्वियार णिक्कलुसा। णिब्भव णिरासभावा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।४९।। जो स्नेहरहित है, लोभरहित है, मोहरहित है, विकाररहित है, कलुषतारहित है, भयरहित है और आशारहित है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।।४९।। जह जायरूवसरिसा, अवलंबियभुय णिराउहा संता। परकियणिलयणिवासा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।५०।। जिसमें सद्योजात बालकके समान नग्न रूप धारण किया जाता है, भुजाएँ नीचेकी ओर लटकायी जाती हैं, जो शस्त्ररहित है, शांत है और जिसमें दूसरेके द्वारा बनायी हुई वसतिकामें निवास किया जाता है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।।५।। उवसमखमदमजुत्ता, सरीरसंक्कारवज्जिया रूक्खा। मयरायदोसरहिया, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।५१।। जो उपशम, क्षमा तथा दमसे युक्त है, शरीरके संस्कारसे वर्जित है, रूक्ष है, मद राग एवं द्वेषसे रहित है ऐसी जिनदीक्षा कही गयी है।।५१।।। विवरीयमूढभावा, पणट्ठकम्मट्ठ णटुमिच्छत्ता। सम्मत्तगुणविसुद्धा, पव्वज्जा एरिसा भणिया।।५२।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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