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________________ बीस कुंदकुंद-भारती श्रमणस्य' यह उल्लेख पाया जाता है। विशेष परिज्ञानके लिए पुरातन वाक्य सूचीकी प्रस्तावनामें स्व. पं. जुगलकिशोरजी मुख्यारका संदर्भ पठितव्य है। कुंदकुंद साहित्यमें सुषमा __कुंदकुंदाचार्य ने अधिकांश गाथा छंदका, जो कि आर्या नामसे प्रसिद्ध है, प्रयोग किया है। कहीं अनुष्टुप् और उपजातिका भी प्रयोग किया है। एक ही छंदको पढ़ते-पढ़ते बीचमें यदि विभिन्न छंद आ जाता है तो उससे पाठकको एक विशेष प्रकारका हर्ष होता है। कुंदकुंद स्वामीके अनुष्टुप् छंदका नमूना देखिए -- ममत्तिं परिवज्जामि, निम्ममत्तिमुवट्ठिदो। आलंबणं च मे आदा, अवसेसाइ वोसरे।।५७।। -- भावप्राभत एगो मे सस्सदो अप्पा, णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा।।५९।। -- भावप्राभृत सुहेण भाविदं णाणं, दुहे जादे विणस्सदि। तम्हा जहाबलं जोई, अप्पा दुक्खेहि भावए।।६२।। -- मोक्षप्राभृत विरदी सव्वसावज्जे, त्रिगुत्ती पिहिदिदिओ। तस्स सामाइगं ठाइ, इदि केवलिसासणे।।१२५ ।। जो समो सव्वभूदेसु, थावरेसु तसेसु वा। तस्स सामाइगं ठाइ, इदि केवलिसासणे।।१२६ ।। -- नियमसार चेया उ पयडी अटुं, उप्पज्जइ विणस्सइ। पयडी वि चेययटुं, उप्पज्जइ विणस्सइ।।३१२।। एवं बंधो उ दुण्हं वि, अण्णोण्णप्पच्चया हवे। अप्पणो पयडीए य, संसारो तेण जायए।। -- समयप्राभृत एक उपजातिका नमूना देखिए -- णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहियेण। णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा।। -- प्रवचनसार अलंकारोंकी पुट भी कुंदकुंद स्वामीने यथास्थान दी है। जैसे, अप्रस्तुत प्रशंसाका एक उदाहरण देखिए -- न मुयइ पयडि अभब्वो, सुट्ट वि आयण्णिऊण जिणधम्म। गुडदुद्धं पि पिवंता ण पण्णया णिव्विसा होति।।१३६ ।। -- भावप्राभृत थोड़ेसे हेरफेर के साथ यह गाथा समयप्राभृतमें आयी है। उपमालंकारकी छटा देखिए --- जह तारयाण चंदो, मयराओ मयउलाण सव्वाणं। अहिओ तह सम्मत्तो, रिसिसावय दुविहधम्माणं ।।१४२।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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