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________________ (१७) भी पानी भर गया सो एक विलवासी नीव दुःखी होकर निकल भागा । उसे देखकर एक सांप पोछे लगा। जब वह जीव विलमें घुसा, तो साथ ही वह सांप भी घुसा और जाते ही उस जीवको अपना भक्ष्य बनाया, परंतु इतनेसे उस सांपकी तृष्णा न मिटी, तब वह इधर उधर और जानवरोंकी खोज करने लगा कि अचानक वहां एक नौला मिल गया उसने सांपको पकड़ कर उसके टुकड़े टुकड़े कर डाले, सो हे स्वामिन् ! "नाग लोभ अतिशय कियो, खोये अपने प्राण । तातें हट स्वामी तनो, तुम हो दया निधान ॥ तव स्वामी यह वार्ता सुन कहने लगे-"ए सुंदरी ! किसी वनमें एक बहुत भूखा गीदड़ फिरता था। एक दिन वह उस नगरके समीप किसी मरे हुए बैलके सड़े कलेवरको देखकर मक्षण करने लगा । जव खातेर सवेरा होगया और नगर के लोक सब वाहर निकले, तो भी वह लोभी गांदड़ तृप्णावश वहीं बैठा खाता रा। नगरवासियों ने नव उस वहा देखा तो उन्होंने तुरत नाकर उसे पकड़ लिया और किसीने उसकी पूंछ काट ली, किसीने कान काट लिये, किसीने दात उखाड़ लिये और जव इन लोगोंने उसे छोड़ा तो कुत्तोंने उसका पीछा किया और चीयर कर उसे मार डाला । यदि वह गीदड़ अपनी मूखके अनुसार खा करके कहीं भाग गया होता और तृप्णा न करता तो अपने प्राण अवश्य बचा सकता था, सो ऐ सुन्दरी ! "जैसे वह गीदड़ मुबो, तृष्णावश निर्धार । - तैसे मुझ भव जलधिसे, कोन उतारे पार ।।
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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