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________________ (३१) " आज्ञा सुनत कुमारकी; वोले द्वय खगनाथ । राजगृही तक हम उभय; चाल है तुम्हरे साथ ||" तब स्वामीने कहा- जो चलना है तो अब विलंब न कीजिये शीघ्र ही चलना चाहिये, क्योंकि समय अनमोल है । जाते हुए जाना नहीं जाता और गया हुआ फिर पीछे नहीं मिलता है इसलिये उत्तम पुरुषों को चाहिये कि जो कुछ कार्य करना हो, शीघ्र ही कर लिया करें । स्वामीकी आज्ञाप्रमाण वे दोनों विद्यावर राजा अपने अपने रनवास सहित योग्य भेंट तथा पुत्रीको साथ लेकर आकाश मार्ग से क्षणभर में राजगृही आये । राजा श्रेणिक तथा पुरजन लोग स्वामीका आगमन सुनकर अगवानीको आये और सबने परस्पर भेंट मिलाप किया । परस्पर 'जुहारु' कहके कुशल समाचार पूछे । सबने मिलकर नगरमें प्रवेश किया । अहा "निरखत कुँवर सवहि हर्षाये, मनहु अंब फिर लोचन पाये ।" सबसे पहिले वे राजमहल में आये, तो राजा श्रेणिकने उनको अर्द्ध सिंहासन पर बैठाया तथा और सबको भी ययायोग्य स्थान दे सन्मानित किया, कुशलक्षेम पूँछी, बाद राजा स्वामीकी नम्र वचनोंसे स्तुति करने लगे "हे कुमार ! आपके प्रभादसे हमको अलभ्य वस्तुकी प्राप्ति हुई | धन्य है आपको कि जो कार्य अगम्य था उसे भी आपने सुगम कर दिया । " तब स्वामीने भी शिष्टाचार पूर्वक यथोचित उत्तर दिया और फिर रामासे सब खगराजाओं का, जो आये थे, परिचय कराया। सभी परस्पर 'जुहारु' कहके प्रीति सहित मिले,
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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