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________________ यह हाल देखकर स्वामी बोले-"अरे दुष्ट ! तू मेरे देखते हुए इसे कहाँ लिये नाता है ? छोड़ छोड़ और भो अपनी कुशलता चाहे तो मृगाकको नमस्कार कर " यह सुनकर रत्नचूल अपने पूर्व बंधनकी सुध भूल क्रोधित हो स्वामीके सम्मुख युद्धके लिये आया । ठीक है "होनहार मिटती नहीं, लाख करो किन कोय । करी उदय आवे जिसो, तैसी बुद्धी होय ॥" इससे पुन. वोर संग्राम होने लगा। निदान थोडी देरहीमें स्वामीने रत्नचलको फिरसे बॉध लिया, तब पुष्पवृष्टि होने लगी, देवदुमि याने बनने लगे। मृगांककी सेनामें हर्प और रत्नचूलकी सेनामे शोक फैल गया । स्वामीने राजा रत्नबुलको भागती हुई मयमीत सेनाको ढाढम दिया। पश्चात् राग मृनांकने स्वामी सहित हाथीपर आरूढ होकर नगरमें प्रवेश किया। उस समय राजा मृगक स्वामीके ऊपर छन किये और चार बोरते हुए चले जाते थे। मगर अच्छी तरह सजाया गया था और घरोघर आनंदबधाई हुई। इस समयकी शोभाका वर्णन नहीं हो सकता है। नारियोंके समूहके समूह जहाँ तहा मंगल कला लिये खड़े थे। एक तो जीतका हर्ष और दूसरे स्वामीके अपूर्व दर्शनका लाभ, फिर भला खुशीका क्या पार था। लोग अपने अपने भाग्यकी सराहना करते थे-" अहो अन्य भाग्य ' आन हमें ऐसे महान् पुरुषका दर्शन हुआ । अहा धाय है इनको माता! निसने ऐमा तेजस्वी पुत्र पैदा किया और धन्य हैं इनके पिता ! जिनने इन्हें लाड़ प्यारसे पाला। धन्य है वे गुरु ! निनने यह अपूर्व
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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