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________________ (२४) व्याहके सम्बन्धम कुछ कहना चाहता है। बारपालने राजासे जाकर विनय की और शीघ्र ही स्वामीको अन्दर ले गया। स्वामीने अन्दर जाकर रागको नमस्कार नहीं किया और यों ही खड़े हो गये। राजाने यह ढिठाई देखकर कहा- अरे अमान ! तुझे दूत किस मुर्ख बनाया है ? तुझे दृतका व्यवहार तो कुछ भी मालूम नहीं हैं। तूने आकर नियमानुसार नमस्कार क्यों नहीं किया ?" यह वचन सुनकर स्वामीने थोड़ा मोटार कहा-"जो राजा अनीति करता है उसे नमस्कार कैसा ?" राजा बोले-"अरे बालक! तुझे क्या हवा लग गई है भला, कह तो सही मैने क्या अनीति की है ? वालक जानकर मैं तो तुझसे कुछ कहता नहीं हू, परन्तु तू उलटा हनहीको दाप देता है।" तव कुमारने हँसकर कहा कि "आपको अपनी अनीति नहीं दीखती है ? ठीक है-"अपने माथेचा तिलक सीधा है या टेढ़ा, यह विना दर्पण अपनेको दृष्टि नहीं पड़ता।" सुनिये, आपकी यह अनीति है कि "जास मॉग सोही बरे देश देश यह रीति । भोणिक मॉग न तुम चहों, वही तु महा-अनीति॥" इसलिये ऐ विद्याधर-राजन् ! इस खोटी हठको छोड़ निन देशमें जाओ और सुखसे राज्य करो। देखो, पहिले रावण, कीचक वगैरह नो अनीतिवान् परत्रिय लंपटी राजा हुए हैं, वे इस भवमें भी दुःख और अपकीर्ति सह कर नरकादि कुगतिको प्राप्त हुए हैं। इसलिये यह हठ अच्छा नहीं है। यह सुन राना क्रोध कर बोला-"लड़कपन मत कर। अभी तुझे मेरे
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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