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________________ ८६. पञ्चम अधिकार। के और तीसरे कालमें नीलवर्णका होता है । वहांके स्त्री पुरुष प्रथम कालमें वेरके समान, द्वितीय कालमें वहेरेके समान और तृतीय कालमें आंवलेके बराबर भोजन करते हैं। वहां तीनों कालोंमें वस्त्रांग, दीपांग गृहांग, ज्योतिरंग, मालांग, भूषणांग, भोजनांग, भाजनांग, वाघांग और माघांग जातिके कल्पवृक्ष होते हैं। तीनों कालोंके स्त्री-पुरुष सुलक्षणोंसे युक्त और क्रीड़ा रत रहते हैं । उनकी तृप्ति कल्पवृक्ष सदा किया करते हैं । यहांके तिर्यंच भी तदनुरुप ही होते हैं । जो लोग उत्तम पात्रोंको शुभ दान देते हैं, वे भोगभूमिमें उत्पन्न होकर इन्द्रके समान सुख भोगनेके अधिकारी होते हैं। जिस समय अवसर्पिणी कालका अस्त होरहा था, पल्यका आठवां भाग वाकी था और कल्पवृक्ष नष्ट हो रहे थे, उस समय कुलकर उत्पन्न हुए थे। उनके नाम क्रमसे १४ प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमंधर, सीमकर, सीमंधर, विमलवाहन चक्षुष्मान, यशस्वान, अभिचन्द्र, चन्द्राभ; मरुदेव प्रसेनजित और नाभिराय थे । इनमें से सुख प्रदान करनेवाले नाभिरायकी आयु एक करोड़ वर्ष थी और उन्होंने उत्पन्न होनेके समय ही नाभि-काटनेकी विधि बताई थी। इस प्रकार सभी कुलकर अपने २ नामके अनुसार गुण धारण करनेवाले थे । वे एक एक पुत्र उत्पन्न कर तथा लोगोंको सद्बुद्धि दे स्वर्ग सिधार गये । पर तीसरे कालमें जव तीन वर्ष साढे आठ महीने अधिक चौरासी लाख वर्ष बाकी थे, उस समय युग्मधर्मको दूर करनेवाले मति, श्रुत, अवधिज्ञानले सुशोभित त्रिलोकके स्वामी, तीनों लोकोंके इन्दों द्वारा पूज्य
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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