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________________ पञ्चम अधिकार। संघात, समचतुरन, न्यग्रोधपरिमण्डल, स्वातिक, कुजक,. वामन, हुंडक, ये छः संस्थान, वनवृषभ, नाराव, वजनाराच, नाराच, अर्द्धनाराब कीलक, असप्राप्तासृपाटिक ये छः संहनन, स्पर्श आठ, रस पांव. गंध दो, वर्ण पांच नरक, तिर्यंच मनुष्य देवगत्यानुपूर्वी अगुरु लघु, उपधात, परघात, आतप, उद्यात उच्छ्वास विहायो गति दो, प्रत्येक साधारण बस, स्थावर, सुभग, दुर्भग, दुस्वर, उस्वर, शुभ, अशुभ, सूक्ष्म, स्थूल, पर्याप्ति अपर्याप्ति स्थिर, अस्थिर आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति अयश कीर्ति, तीर्थंकर। जिस प्रकार कुम्हार छोटे बड़े हर प्रकार वर्तन तैयार करता है, उसी प्रकार ऊंच नीच गोत्रों में जो उत्पन्न करे, उसे गोत्रकर्म कहते हैं। उसके ऊंच गोत्र और नीव गोत्र दो भेद होते है। दान आदि लब्धियोंमें जो विघ्न उत्पादन करता है, वह अन्तराय है। उसके पांच भेद बतलाये गये हैं-दानांतराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय वीर्यान्तराय। विद्वानोंने ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ा कोडी सागरकी वतलाई है और आयु कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तैतिस सागरकी। किन्तु इनकी जघन्य स्थिति वेदनीयकी बारह मुहूर्त नाम और. गोत्रकी आठ और शेष कर्मोंकी अन्तर्मुहुर्त है। यह जीव शुभ परिणामोंसे पुण्य और अशुभ परिणामोंसे पाप संचय करता है। शुभ आयु, शुभ नाम, शुभ गोत्र और सातावेदनीय पुण्य है और अशुभ आयु, अशुभ नाम, अशुभ गोत्र, असाता वेदनीय ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय पाप हैं। पाप
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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