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________________ पचम अधिकार। मिश्र, वैफियिक, वैफियिक-मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र और कार्यार्ण है। फाय चेदनीय और नौकागय वेदनीय ये कमायके दो भेद हैं। इनमें अनन्तानुबन्धी मोध, मान माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण शोध मान, माया, लोम, अप्रत्यारपानावरण मोध मान माया लोभ और संज्वलन शोध मान माया लोम ये सोला प्रकार भेद काय वेदनीय फे है । और हास्य, रनि, अति, शोक, भय जुगुप्सा पुलिस नीलिङ्ग नपुन्सक लिङ्ग ये नौ भेद नौ कपाय वेदनीय के हैं। इस प्रकार फपायकं कुल पच्चीस भेद होते है। जिस प्रकार समुद्र में पड़ी हुई नोकामें छिन्द्र दोजाने से उसमें पानी भर जाता है, उसी प्रकार मिथ्यात्व, अविरत भादिके द्वारा जीवोंके फोका आम्रव होता रहता है। यह सम्बन्ध अनादिकालसे चला भारता है। कर्मों के उदयसे ही जीवों में रागद्वेष रूप के भाव उत्पन्न होते हैं। रागदप रूप परिमाणोंसे अनन्त पुद्गल आकर इस जीवके साथ सम्मिलित हो जाते हैं। पुनः नये फर्मोका बन्ध आरम्भ होता है। इस प्रकार कर्म और आत्माका सम्बन्ध अनादिकालले है। जिनागममें प्रकृति, स्थिति भनुमान और प्रदेश ये बंधके चार भेद बतलाये गये है। ज्ञाना. धरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये प्रकृतिके आठ भेद हैं। प्रतिमाके ऊपर पड़ी हुई धूल जिस प्रकार प्रतिमाको ढंक लेती है, उसी प्रकार शानावरण कर्म शानको ढंक लेती है। मति शानावरण, श्रुतशाना. ‘वरण, अवधि शानावरण, मनःपर्यय ज्ञानावरण, और केवल
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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