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________________ गौतम चरित्र । 1 संवृत, निवृत, संवृत निवृत ये नत्र प्रकारकी योनियां हैं। उत्पन्न होते ही जिन पर जरा आती है वे जरायुज और जिनपर जरा नहीं आती वे अॅडज़ और पोत ये गर्भ से उत्पन्न होते है । इतर सब जीत्र संमूर्छन उत्पन्न होते हैं । योनियों के ये नत्र भेद जिनागम में संक्षेपसे बतलाये गये है, अन्यथा यदि विस्तार पूर्वक कहे जांय तो चौरासी लाख होते हैं । नित्य. निगोद, इतर निगोद, पृथ्वीकादिक, जलकादिक अग्निकादिक वायुकादिक इनकी सात सात लाख योनियां है । इन योनियों में जीव सदा परिभ्रमण किया करता है । वनस्पति जीवोंकी दश लाख योनियां है । दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय । इनकी दो-दो लाख योनियां हैं, जिनमें ये जीव, जन्म मृत्यु के दुःख भोगा करती हैं। चार लाख योनियां. नारकीयों की हैं जो शीतोष्णके दुःख भोगती हैं । वे शारीरिक मानसिक और असुर कुमार तथा देवोंके दिये हुए पाँच प्रकार के दुःख भोगती हैं। चार लाख योनियां निर्यचों की है वे मारन छेदन आदि के कष्ट भोगती हैं। चौदह लाख योनियाँ मनुष्यों " -1 संयोगके कष्ट झेलती हैं । .. की हैं, वे इष्ट वियोग और अनि इनके अतिरिक्त देवोंकी चार लाख दुःख भोगनेके लिए वाध्य हैं । अर्थात् हे राजन् ! संसारमें कहीं योनियां है. वे भो मानसिक भी सुख नहीं हैं । गर्भ से उत्पन्न होने वाले स्त्री पुरुष, स्त्रीलिंग 1 ; ܘܟ 1 . : पुलिङ्ग और नपुंसक लिंगके धारण करने वाले होते हैं । पर देव दो लिंगों को अर्थात् स्त्रीलिंग और पुलिंङ्ग को ही धारण करने वाले होते हैं । एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, चौ इन्द्रिय सम्मूर्छन पंचे.
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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