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________________ . ,गौतम चरित्र ..................... worrimmmm...mirmirrme.. ., www................ प्रकृतियोंको उन्होंने नौवे गुण स्थानके पूर्व में नष्ट किया। पुनः अप्रत्याख्यनावरण, क्रोध मान, माया लोभ अष्ट कषायोंको दूसरे अशमें नए.किया..और नपुन्सकलिंग, स्त्रीलिंग, हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा पुलिङ्ग संज्वलन क्रोध मानमाया समस्त प्रकृतियां नष्ट की। संज्वलन लोभ प्रकृति सुक्ष्म सांपराय दशवें.गुण स्थानके उपांत्यमें निद्रा प्रचला विनष्ट हुई और इसी गुण स्थानके अंतमें पांचों ज्ञानावरण, चारों दर्शनावरण. और पांचों अंतराय कर्म नष्ट किये। उक्त तिरसठ प्रकृतियोंको नष्ट कर गौतम मुनिराज केवलज्ञान. प्राप्त कर तेरहवें गुण स्थानमें प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन,अनन्त सुख और अनन्त वीर्य प्राप्त किये । उनके लिये देवों ने गन्धकुटीकी रचना की ! जिसमें केवली भगवान, विराजमान हुए। उन्हें इन्द्रादिदेव भक्ति पूर्वक नमस्कार करने लगे। समस्त गणधर मुनिराज और राजाओंने गौतम स्वामीकी भक्तिपूर्वक पूजा की और नमस्कार कर अपने अपने स्थानपर बैठे। जिन्हों • ने अलोक सहित तीनों लोकोंको देखा है, जिनका विषय समु. दाय नष्ट हो चुका है, जो लीला पूर्वक कामदेवको नष्ट कर ब्राह्मण वंशको सुशोभित करनेके लिये मणिके तुल्य है,वे केवलज्ञानी भगवान गौतम स्वामी मोक्ष प्रदान करने वाला भव्य ज्ञान देते रहें।
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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