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________________ चतुर्थ अधिकार। कर्त्तव्य होता है कि, इसका समाधन करदें । उस वृद्धकी बातें सुनकर अपने पांचसौ शिष्योंद्वारा प्रेरित गौतम शुभ वचन कहने लगा-हे वृद्ध ! क्या तुझे नहीं मालूम, इस विषयमें अनेक शास्त्रोंमें पारगत और पांचसौ शिष्योंका प्रतिपालक मैं प्रसिद्ध हूं। तुम्हें अपने काव्यका बड़ा अभिमान होरहा है। कहो तो सही,उसका अर्थ मैं अभी बतला दू । पर यहतो बताओ कि मुझे क्या दोगे ? उस वृद्धने कहा-ब्राह्मण! यदि आप मेरे काव्यका समुचित अर्थ बतला देगें तो मैं आपका शिष्य बनजाऊंगा। किन्तु यह भी याद रखिये कि यदि आपने यथावत उत्तर नहीं दिया तो आपको भी अपनी शिष्यमण्डलीके साथ मेरे गुरुका शिष्य हो जाना पड़ेगा। गौतमने भी स्वीकृति देदी। इस प्रकार इन्द्र और गौतम दोनों ही प्रतिज्ञामें बंध गये । सत्य है ऐसा कौन अभिमानी हैं जो न करने योग्य काम नहीं कर डालता । इसके पश्चात् सौधर्मके इन्द्रने गौतमके अभिमानको चूर करनेके उद्देश्यसे आगमके अर्थको सूचित करनेवाला तथा गंभीर अर्थसे भरा हुआ एक काव्य पढ़ा । वह काव्य यह था "धर्मद्वयं त्रिविधकाल समग्रकर्म, षड् द्रव्यकाय सहिताः समयैश्च लेश्याः। तत्वानि संयमगतीसहिता पदाथरंगप्रवेदमनिशवदचास्ति कायम्, ।" धर्मके दो भेद कौन कौनसे हैं। वे तीन प्रकारके काल कौन हैं; उनमें काय सहित द्रव्य कौन हैं, काल किसे कहते हैं, लेश्या कौन कौनसी और कितनी हैं । तत्व कितने और कौन
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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