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________________ चतुर्थ अधिकार नमस्कार किया और उनका नाम महावीर रखा । इसप्रकार तप करते हुए भगवानको जब बारह वर्ष व्यतीत होगये, तब एक ऋजुकुल नामकी नदीके समीपवर्ती जभक ग्राममें वे पृष्टोपत्रास (तेला ) धारण कर किसी शिलापर आसीन हुए। उस दिन वैशाख शुक्ल दशमी थी। उसी दिन उन्होंने ध्यानरूपी अग्निसे घातिया कर्मोंको नष्टकर केवलज्ञानकी प्राप्ति की। केवल ज्ञान होजाने पर शरीरकी छाया न पड़ना आदि दशों अतिशय प्रकट होगये। उस समय इन्द्रादिकोंने आकर भगवानको भक्तिके साथ नमस्कार किया। इन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने चार कोसं लंबा-चौड़ा समवशरण निर्मित किया। वह मानस्तंभ ध्वजा दण्ड घंटा, तोरण, जलसे परिपूर्ण खाई, सरोवर, पुष्प वाटिका, उच्च धुलि प्राकार नृत्य शालाओं, उपवनोंसे सुशोभित था तथा वेदिका, अन्तर्ध्वजा सुवर्णशाला, कल्पवृक्ष आदिसे विभूषित था । उसमें अनेक महलोंकी पक्तियां थीं। वें मकान सुवर्ण और मणियोंसे बनाये गये थे। वहां ऐसी मंणियोंकी शालायें थीं, जो गीत और बाजोंसे सुशोभित हो रही थीं। समवशरणके चारों ओर चार बड़े बड़े फाटक थे। वे सुवर्णके निर्मित भवनोंसे भी अधिक मनोहर दीखते थे । उसमें बारह सभायें थीं, जिसमें मुनि, अर्जिका कल्पवासी देव, ज्योतिषी देव, व्यंतर देवं, भवनवासी देव, कल्पवासी देवांगनायें ज्योतिषीदेवोंकी. देवांगनायें भवनवासी देवोंकी देवांगनायें, मनुष्य तथा पशु उपस्थित थे। अशोकवृक्ष, दुदभी; छत्र, भामण्डल, सिहांसन, चमर पुष्पवृष्टि और दिव्यध्वनि
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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