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________________ अथ चतुर्थ अधिकार * *~># Ep-ka " भरतक्षेत्र के अन्तरगत ही अत्यन्त रमणीक एवं विभिन्न नगरोंसे सुशोभित त्रिदेह नामका एक देश है । उस देश में कुंडपुर नामक एक नगर अपनी भव्यता के लिए प्रख्यात है । वह नगर बड़े ऊंचे कोटों से घिरा हुआ है एवं वहां धर्मात्मा लोग निवास करते हैं। वहां मणि, कांचन आदि देखकर यही होता है कि, वह दूसरा स्वर्ग है । उस नगर में सिद्धार्थ नामके एक राजा राज्य करते थे । उनकी धार्मिकता प्रसिद्ध थी । वे अर्थ. धर्म, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थीको सिद्ध करने वाले थे। उन्हें विभिन्न राजाओं को सेवाएं प्राप्त थी । इतना ही नहीं सुन्दरता में कामदेवको परास्त करने वाले, शत्रुजीत, दाता और भोक्ता थे । नीतिमें भी निपुण थे - अर्थात् समस्त गुणों के आगार थे । उनकी रानीका नाम त्रिशला देवी था। रानीकी, सुन्दरताका क्या कहना - चन्द्रमाके समान मुख मण्डल, मृग की सी आंखें, कोमल हाथ और लाल अधर अपनी मनोहर छटा दिखला रहे थे । उसकी जांघे कदली के स्तम्भों सी थीं। नाभि नम्र थी, उदर कृश था, स्तन उन्नत और कठोर थे, धनुपके समान भौंहें एवं शुरुके समान नाक थी । ऐसी रूपवती महारानी के साथ राजा सिद्धार्थ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे ।
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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