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________________ ' गौतम चरित्र । न्यताके साथ संसारी जीवोंकी बुद्धि भी तदनुरूप हो जाती है। मुनिराजके उपदेशसे उन तीनों कन्याओंने उद्यापनके साथ लधिविधान व्रत किया और श्रावकोंके व्रत धारण किये । उन्होंने उत्तम क्षमा आदि दश धर्म तथा शीलवत धारण किये । कालान्तरमें उन तीनों कन्याओंने जिन-मन्दिरमें पहुंच कर मन वचन कर्मसे शुद्धतापूर्वक भगवानकी विधिवत पूजा की। इसके पश्चात् आयुपूर्ण होनेपर उन तीनों कन्याओंने समाधिमरण धारण किया, अरहन्त देवके वीजाक्षर मंत्रोंका स्मरण किया तथा भक्तिपूर्वक उनके चरणोंमें वे नत हुई। मृत्युके पश्चात् उनका स्त्रिलिंग परिवर्तित हो गया और वे प्रभावशाली देव हो गये। उनके शरीर यौवनसे सुशोभित हुए। उन्हें अवधिज्ञानसे ज्ञात हो गया कि वे लब्धिविधान व्रतके फल स्वरूप स्वर्गमें देव हुए है। वे सदा देवांगनाओंके साथ सुख भोगते थे। उनका शरीर पांच हाथ ऊंचा, उनकी आयु दश सागरकी तथा वे विक्रिया ऋद्धिसे सम्पन्न थे। उनकी मध्यम षडलेश्या थी और तीसरे नरक तकका उन्हें भवधिज्ञान था। वें भगवान सर्वज्ञ देवके चरणोंकी इस प्रकार सेवा किया करते थे, जिस प्रकार एक भ्रमर सुगन्धित कमल पुष्पोंपर लिपटा रहता. है। साथ ही अनेक 'देव देवियां भी उनके वरणोंकी सेवा किया करती थीं। इस ओर राजा महीचन्द्रने भी संसारकी अनित्यता समझ कर अङ्गभूषण मुनिराजसे जिन-दीक्षा ग्रहण की। वे इन्द्रियोंका सर्वदा दमनकर महा तपश्वरण करने लगे तथा परिषहोंको 'जीतकर उन्होंने मूलगुण और उत्तरगुणोंको धारण किया। .
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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