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________________ ४० गौतम चरित्र। vvv कठिन है। इसलिए हे जीव! तू इच्छा पूरक चिन्तामणिके समान सुख प्रदान करने वाले रत्नत्रयको पाकर क्यों समयको नष्ट कर रहा है ! अपना कल्याण साधन कर । अहिंसा रूप यह धर्म एक प्रकारका हैं । मुनि श्रावक भेदसे दो प्रकार,क्षमा मार्दव आदिसे दश प्रकार, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति भेदसे तेरह प्रकार एवं और व्रतोंके भेदसे अनेक प्रकारका है। धर्मकी कृपा से ही आत्माके परिणाम पवित्र होते हैं और उसी पवित्रतासे आत्मा प्रबुद्ध होता है एवं प्रबुद्ध होने पर वह रत्नत्रयमें स्थिर होनेमें समर्थ होता हैं। स्त्रियों द्वारा सताये हुए वे मुनिराज इस . प्रकार की वारह अनुप्रेक्षाओं पर विचार करने लगे। उन्हें स्त्रियों के उपद्रवचका कुछ भी ज्ञान नहीं था। प्रातःकाल होते ही वे. स्त्रियां आने-जाने वाले लोगोंके डरसे भाग गयीं। किन्तु कर्मों को विनष्ट करने वाले वे मुनिराज उसी प्रकार निश्चल रहे। उनके आत्मध्यानमें किसी प्रकारका विक्षेप नहीं हुआ। इसके बाद वहां अनेक श्रावक एकत्रित हो गये। उन्होंने मन वचन कायसे शुद्धतापूर्वक चन्दनादि अष्ट द्रव्योंसे मुनिराजकी पूजा की। उनका शरीर तो क्षीण था ही, उस पर रातके उपद्रवसे उनके सर्वाङ्गमें घाव हो रहे थे। उन्होंने मौन धारण कर लिया था। इन सव. कारणोंको देख कर उन सत्पुरुषोंने रात्रिका काण्ड समझ लिया। स्त्रियों के कटाक्ष भी सत्पुरुपौंको चलायमान नहीं कर सकते। क्या प्रलयकी वायु मेरुको उड़ा सकती है, संभव नहीं! यद्यपि इस संसारमें शेरको मारने वाले और हाथियोंको बांधने
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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