SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ naamannrn...m...amar ३४ गौतम चरित्र । और सामन्त गजाओंने मिल कर राज्य-तिलक की विधि सम्पन्न करायी। उस राजाके मृत्जीवको अनेकवार संसारका चक्कर काटना पड़ा। इसी जन्म-मृत्युके चक्कर में वह एकबार विशाल हायी हुआ। वह हाथी अत्यन्त तेजस्वी और बड़ा ही मदोन्मत्त था । उसकी 'विकराल आंखें लाल रंगकी थीं । वह इतना उद्दण्ड था कि वन में स्त्री-पुरुषोंकी हत्या कर डालता था। उस हाथीने इस भवमें महापापका उपार्जन किया । कारण यह कि, प्राणियोंका घात करना जन्म-जन्ममें दुःखदायी हुआ करता है। किन्तु उस हाथीके पुण्य-कर्मके उदयसे उस बनमें किसी मुनिराजका आगमन होगया । वे मुनि महाराज अवधिज्ञानी और सत्पुरुषोंके लिए उत्तम धर्मोपदेशक थे। उनके द्वारा हाथीको धर्मोपदेश मिला। उसने बड़ी प्रसन्नतासे श्रावकके व्रत ग्रहण कर लिए। इसके बाद उस हाथीने फल फूलादि किसी भी सचित पदार्थोंका ग्रहण नहीं किया । अन्तमें उसने चारों प्रकारके आहार त्याग कर समाधिमरण धारण कर लिया। मृत्युके समय उसने भगवान अहंतदेवका ध्यान किया; जिससे वह मर कर प्रथम स्वर्ग में देव हुआ। हे राजन! वहांसे चयकर तुम्हें राजाका उत्तम शरीर प्राप्त हुआ है। आगे तुझे भी मुक्तिको प्राप्ति होगी। अब उन तीनों स्त्रियोंकी कथा कहता हूं। ध्यान देकर सुन वे तीनों बड़ी प्रसन्नतासे स्वतन्त्रता पूर्वक वनमें विचरण करने लगी। इस प्रकार भ्रमण करते हुए वे अवन्ती देशमें जा
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy