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________________ २६ NAAAAAAAAA aamanaraaaaaaaaaaa........... गौतम चरित्र । स्वभावसे ही वसन्त ऋतुमें तरुणोंमें कामोपभोगकी लालसा प्रबल हो उठती है। समस्त वृक्ष फल-फूलोंसे लद गये। उनपर पक्षियोंका निवास हो गया । उस लमय तरुण पुरुष भी अपनी कान्ताके साथ परस्पर संभोगके लिए उत्सुक हो गये। प्रेम पूर्ण कामिनियां उनके हृदयोंमें निवास करने लग गयीं । बसन्त की उन्मत्तता शील संयमादि धारण करने वाले मुनियोंको भी विचलित करनेसे नहीं चूकती। कामरूपी योधा वसन्त, क्षीण शरीरवाले मुनियोंतकके हृदयों में भी क्षोभ उत्पन्न कर रहा था। उसी समय राजा विश्वलोवन अपनी विशाल सेना और नगर निवासियोंको साथ लेकर क्रीड़ाके लिए उस वनस्थलीमें पहुंचा, जहांके वृक्ष लताओंसे भरपूर हो रहे थे। वन में पहुंच कर राजाको हार्दिक प्रसन्नता हुई । वनकी मनोहर सुन्दरता, वायु से चन्चल लताओंके समूह एवं चहकते हुए पक्षियोंकी समधुर ध्वनिसे ऐसा प्रतीत होता था,मानो राजा विश्वलोचनके समक्ष वायुरूपी अप्सरा नृत्य कर रही हो। वह लतारूपी अप्सरा पुष्पोंसे सजी हुई थी। वृक्षोंकी पत्तियां उसके रमणीय केशसे प्रतीत होती थी। फल स्तन थे। हंसादि पक्षियोंकी सुमधुर ध्वनि संगीतका भान करा रहे थे। . वह वनस्थली सारी छटाको धारण किये हुए थी। मानव चितको चुरानेवाली लतायें पुष्प हार जैसी. सुशोभित थीं। बसंतके उन्मत्त भूमरों की झंकार उसके गीत थे, कोयलोंकी वाणी मृदंग और शुकको ध्वनि वीणा । छिद्रयुत वासोंकी आवाज सम और तालका काम दे रही थीं। इस प्रकार सारी वनस्थली लहलहा उठी
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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