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________________ गौतम चरित्र। नगरका राजा महीचन्द्र था जो दूसरा चन्द्रमा ही था। उसकी सुन्दरता अपूर्व थी। अनेक राजा तथा ' जन समुदाय बड़ी भक्तिके साथ उसकी सेवा करते थे। इतना सब कुछ होते 'हुए भी उसके हृदयमें अहंत देवके प्रति बड़ी भक्ति थी। वह धनका भोग करनेवाला, दाता, शुभ कामों को सम्पन्न करनेवाला,नीतिज्ञ और गुणी था । अतः वह महाराज भरतके समान जान पड़ता था। दुष्टोंके लिये वह कालके समान और सजनों का प्रतिपालक था। राजा महोचन्द्र राजविद्या और युद्धविद्या दोनोंमें निपुण था। राजाकी सुन्दरी नामकी रानी थी। वह अत्यन्त गुणवती, रूपवती, पतिप्रता और अनेक गुणोंसे सुशोभित थी। वह राजा सुन्दरीके साथ राज्य सामग्रीका उपभोग करते हुए पंचपरमेष्ठियोंको नमस्कार आदि करते हुए सुख पूर्वक समय व्यतीत कर रहा था। उस नगरके बाहर एक दिन अंगभूषण नामके मुनिराजका आगमन हुआ। वे आमके पेड़के नीचे एक शिलापर आसन लगा कर बैठ गये । उनके साथ चारों प्रकारका संघ था । वे अवधिज्ञानधारी सम्यग्दर्शन से विभूषित थे। कामरुपी शत्रु ओंको मर्दन करनेवाले थे और सम्यक् चारित्रके आवरण करने में सदा तत्पर थे। तपश्वरणसे उनका शरीर अत्यंत क्षीण होगया था। क्रोध, कषाय, मान रूपा महापर्वतको चूरकरनेके लिए वे वंजके समान तीक्ष्ण थे। मोहरूपी हाथोके लिए सिंहके समान तथा इन्द्रिय रूपी मल्लोको परास्त करनेवाले थे। इसके अतिरिक्त परिषहोंको जीतनेवाले सर्वोत्तम और छः आवश्यकों
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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