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________________ Annnn.. प्रथम अधिकार। 'मुनि और श्रावकोंके धर्ममें दो भेद हैं। मुनिधर्म मोक्षका साधन होता है और श्रावक धर्मसे स्वर्ग-सुखकी प्राप्ति होती है। सम्यग्दर्शन,सम्यकज्ञान और सम्यग्चारित्रके भेदसे मोक्षमार्ग तीन प्रकारका होता है। अर्थात् तीनोंका समुदाय ही मोक्षमार्ग है। उनमें सम्यग्दर्शन उसे कहते है, जिसमें जीव भजीव आदि सातों तत्वोंका यथार्थ श्रद्धान किया जाता हो । वह भी दो प्र. कारका होता है--एक निसर्गज-विना उपदेशादिके, और दूसरा अधिगमज अर्थात् उपदेशादि द्वारा । इन दोनोंके भी औपशमिक,क्षमिक और क्षायोपशमिक भेदसे तीन भेद और कहेगये हैं। अनन्तानुवन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यकप्रकृति मिथ्यात्व इन सप्त प्रभृतियोंके उपशम होनेसे औपशमिक सम्यग्दर्शन प्रकट होता है और सातों प्रकृतियोंके क्षय होनेसे क्षायिक सम्यग्दर्शन प्रकट होता है और पूर्वकी छः प्रकृतियोंके उदयोभावी क्षय होने तथा उन्हीं सत्तावस्थित प्रकृतियोंके उपशम होनेसे एवं सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व के उदय होनेसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। पदार्थोके सत्य ज्ञानको सम्यक्ज्ञान कहते हैं। वह सम्यक्ज्ञान मति, श्रुत, अवधि मनः पर्यय और केवलज्ञानके भेदसे पांच प्रकारका होता है । जैन शास्त्रोंके सिद्धान्तके अनुसार पाप रूप क्रियाओंके त्यागको सम्यग्चारित्र कहते हैं । वह पांच महाव्रत,पांच समिति और तीन गुप्ति भेदसे तेरह प्रकारका होता है । अठारह दोपोंसे रहित सर्वज्ञदेवमें श्रद्धान करना, अहिंसारूप धर्ममें श्रद्धान करना एवं परिग्रह रहित गुरुमें श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कह
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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