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________________ AAAA RAN प्रथम अधिकार । उसने बड़ी भक्तिके साथ भगवानको नमस्कार किया। इसके पश्चात वह सब तुओंके फल पुष्प लेकर महाराज श्रेणिक के राजद्वारपर जा पहुंचा । वहां पहुंचकर मालीने द्वारपालसे निवेदन किया कि तू महाराजको सूचना दे आ कि उद्यानका माली आपकी सेवामें उपस्थित होना चाहता है। द्वारपालने जाकर महाराजले निवेदन किया कि आपके उद्यानका माली आपसे मिलनेकी आज्ञा मांग रहा है। महाराजने मालीको लानेके लिए तत्काल आज्ञा दी । यथा समय माली महाराजके सन्मुख पहुंचा । महाराज सिंहासनपर बैठे हुए थे। मालीने हाथ जोड़े और फल-पुष्प समर्पितकर सिर झुकाया। असमयमें फल-फूलों को देखकर महाराजकी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। वे अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने तत्काल ही मालीसे पूछा-ये पुष्प तुम्हें कहां प्राप्त हुए हैं। उत्तर देते हुए मालीने बड़े विनम्र शब्दों में कहा-महाराज ! विपुलाचल पर इन्द्रादि द्वारा पूज्य श्रीमहावीर स्वामीका आगमन हुआ है। उनके प्रभावका ही यह फल है कि वृक्ष असमयमें ही फल-फूलोंसे लद गयेहैं । अभी माली की वात समाप्त भी नहीं हो पायी थी कि महाराज सिंहासनसे उठकर खड़े होगये,और विपुलाचल पर्वतकी दिशाकी ओर सात पग चलकर भगवान महावीर स्वामीको उन्होंने प्रणाम किया। इसके बाद पुनः सिंहासन पर विराजमान होगये। महाराजने प्रसन्नताके साथ वस्त्राभूषणों से मालीका सत्कार किया। यह ठीक ही है, ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो भगवानके पधारने पर सन्तुष्ट न हो।
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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