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________________ ममूलभावानुपाद . ९ देखा तो प्रार्थना की ! नाथ ! मेरे गुमरग्ययिनी पुरी में ' है। उन जगत्पूज्य गुरुओंको मेरे कहने से आप अवश्य बुलावें । राजाने इस भय से कि कहीं यह असन्तुष्ट न होजाय इसलिये उसके बचनोंको स्वीकार किये । और उनके लिबाने के लिये अपने लोगोंको भेजे । वहाँ आकर उन लोगोंने गुरुओंको भक्ति पूर्वक नमस्कार किया और वलभीपुर चलनेके लिये प्रार्थना की। उनकी चार २ प्रार्थनासे तथा बिनग्रसे जिनचन्द्रादि अईफालक वलभीपुरमै आये।जब राजाने उन लोगोंका आगमन सुनातो बहुत आनन्दित होकर-सामन्त मंत्री पुरवासी तथा परिवार के लोगाके साथ २ गीत नृत्य संगीतादिके उत्तम शब्दसे दशों दिशाओंको परिपूर्ण करता हुआ उनकी बन्दनाके लिये नगरसे निकला । और दूरहीसे साधुओंको देखकर मनमें विचारने लगा अपनायाऽसद्गुरकः सन्ति कन्यकुब्जालपाने | नानायर गेन जगत्पूज्यान्मदामहान प्रियाप्रिक्सया भूरसदनी माननगुहा htrg ঈয়ায় সামযিলন। গলা ল গা মা পা শerশান্ত ॥४५॥ नमभ्यर्षिता भूमा पिनपादानराजिनमा सापुरभदनम् || ४ || Trisna marries निगमाग परानन्दयुतानिः ॥ १५ मnिfrare | मामAISमापारस्पपरिवार पEIGHT TIMEHARMt.
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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