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________________ समूलमाषानुवाद लोटे मार्गमें फंसाता है। जिसप्रकार इन इन्द्रियों के वशवाचे लोगोंने स्वयं ही व्रत धारग किया उमी तरह जिन भगवान के सूत्रकी भी अपनी बुद्धि के अनुसार मिथ्या कल्पना की ।। ३१-३२॥ इसी तरह बहुत काल बीत जाने पर उज्जयिनी में चन्द्रकीर्ति नामका राजा हुआ। उसके लक्ष्मीकी समान चन्द्रश्री नामकी पट्टरानी तथा उन दोनोंमें रूपलाबण्यादि गुणोंसे सुशोभित चन्द्रलेखा नामकी उत्तम एक कन्या हुई । उसने उन कुपथगामी अईफालक साधुओंके पास शास्त्र पढ़ा। ___ सौराष्ट्र (सौरठ ) देशमें उत्तम बलभीपुर नाम , पुर था। उसका-अपने तेजसे समस्त शत्रुओंको सन्तापित करने वाला तथा नीति शास्त्रका जानने वाला प्रजापाल नामका राजाथा। उसके-मुन्दर २ लक्षणोंसे सुशोभित प्रजावती नामकी रानी थी। उन दोनोंमें मुन्दर न्मूगावमाश्रितान् ॥ ३१ ॥ यथा स्वयं समाmti Ma: निरालया सूने मभित्र निजपुदिनः ॥ ३३॥ एवं तर म ग पसरे यिन्या विशांनापचन्द्रवपन्द्रकीतिला ॥ ३२ ॥ चन्द्रश्रीः . मयावा तस्याममहिनी शुभापगलाचन्द्रलपात्या नाम सायासे मनिमन्यानो समापि यमपाटन, ISRRIERREETiers पुमाविता राष्ट्रपिम्पाना मुननम् | virgam. नाना नायितः॥३६॥ निजरिनारन AnsaANIपनी
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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