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________________ ५८ - भद्रबाहु-चरित्रजने विशाखाचार्यको प्रणाम किया। उस समय विशाखाचार्यने मनमें विचारा कि श्रावकोंके बिना ये यहां कैसे रहे होंगे इसी विचारसे प्रतिवन्दनाभीन की। उस जगह श्रावकोंका अभाव समझकर उस दिन सव मुनियाने उपवास किया। तब चन्द्रगुप्ति मुनिराज बोले-भगवन ! उत्तम २ लोगोंसे परिपूर्ण बड़ाभारी यहाँ एक नगर है। उसमें श्रावक लोग भी निवास करते हैं। वहां आप जाकर आहार करिये । चन्द्रगुप्ति मुनिके चचनोंसे सब साधुओंको आश्चर्य हुआऔरफिर वेभी वहीं पारणाके लिये गये। नगरमें पदर में श्रावक लोगोंके द्वारा नमस्कार किये जाकर वे मुनि विधिपूर्वक आहार कर जब अपने स्थान पर आये उस समय नगरमें एक ब्रह्मचारी अपना कमण्डल भूल आया था परन्तु जब वह फिर उसे लेनेके लिये गया तो वहां पर नगर न देखा किन्तु किसी वृक्षकी डाली पर कमण्डल टैंका हुआ उसे दीख पड़ा।उसे लेकर ब्रह्मचारी सूरिसत्तमः । फयं श्राद्धं विनाप्रास्थलेष प्रतिवन्दितः ॥ ८॥ तहिने मुनिमिः सर्वशवासं कृतं शुभम् । सागाराभावमन्वानेश्चन्द्रगुप्तिस्ततोऽसपत् ॥ ६ ॥ भगवन् । भूरियागारं नगर नागरैमृतम् । विद्यते विपुलं तत्र क्रियता कायसंस्थितिः ॥१०॥ साश्चर्यदयाले तत्मारणार्थे प्रपेदिरे । सकलराद्धवन्धमानाः पदे पदे ॥११॥ विधाय विधिनाऽधारमाजग्मुस्ते निनाथयम् । तत्रैको काण्डकां वर्णी विस्मृती बरपरा ॥ १२॥ स गतस्ता पुनातु नेक्षते तत्र तपुरम् 1 कुण्डिकां शाखियामास्यां बलोकिवि केवलम् ॥ १३ ॥ मादाय तो बदा वर्णी प्राप्य नहरुमालपत् ।
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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