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________________ १२ भद्रबाहु-चरित्रलगी, दुंदुमि बजने लगे तथा गृहों पर ध्वजायलटकाई गई । इत्यादि नाना प्रकारसे पुत्रका जन्म महोत्सव मनाया गया॥४६॥ अधिक क्या कहा जाय उस पुण्यशाली मुमुतके अवतार लेने से सभीको आनन्द हुआ। जैसे सूर्यके उदयाद्रि पर आनेसे कमलोंको तथा चन्द्रोदयसे चकोरोंको आनन्द होता है।४७॥यह वालक कल्याणका करनेवाला होगा, सौम्यमूर्तिका धारक है, सरलचित है इसलिये बन्धुओंके द्वारा भद्रबाहु नामसे सुशोभित कियागया ॥४८॥ सो सुन्दर स्वरूप शाली भद्रबाहु शिशु स्त्रियोंके द्वारा खिलाया हुआ एक के हाथसे एकके हाथमें खेला पृथ्वीमें कभी नहिं उतरा ॥ १९ ॥ सारे संसारको आल्हादका देने वाला शुक्ल द्वितियाका चन्द्र जैसै दिनों दिन कलाओंके द्वारा वृद्धि को प्राप्त होताहै उसीतरह आखिल जगतको आनन्द देने वाला यह वालकभी अपने गुणों के साथही साथ प्रतिदिन बढ़ने लगा ॥५०॥अपने सौभाग्य, धैर्य, गम्भीरता तथा रूप लावण्यसे बादनः । तस्य जन्मोत्सवं चके केतुमालावलम्बनः ॥ ४६॥ तज्जन्मतो जनाः सः सुप्रमोद प्रपेदिरे । सूर्योदयादिवानानि चकोरा वा विधूदयात् ॥ ४० ॥ माहरो भद्रमतिबालोऽसौ मद्रमानसः । मद्रयाहरिविख्याति प्राप्तवान्यन्धुवर्गतः ॥४॥ सोऽभका सुन्दराकारो लालितो ललिताजनैः । कदाचिन स्थितो मयां कालरतले चरन् ॥ ४९ ॥ दिने दिने तदा वालो क्वृधे सद्गुणैः समम् । कलानिधिः फलाभित्री अगदानन्ददायकः ॥५०॥ सौभाग्यधैर्यगाम्भीर्यरुपरांजितभूतला । क्रमाकुमा
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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