SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समूलभाषानुवाद । जिस देशमें-आश्रित पुरुषोंको उत्तम फलके देनेवाले, शीतल छायाके करने वाले, विशाल शोभासे युक्त, पृथ्वीके आश्रित तथा देखने में मनोहर वृक्ष श्रावकों के समान मालम होते हैं। क्योंकि-श्रावक लोग भी लक्ष्मीसे युक्त, उत्तम क्षमाके स्थान तथा सम्यग्दर्शनके धारक होते हैं ॥ २४ ॥ जिस देशमें नदीमात्रसे निप्पन्न तथा मेघ मात्रसे निष्पन्न क्षेत्र (खेत) से सुशोभित तथा मनोमिलपित धान्य की देने वाली वसुन्धरा चिन्तामणिके समान मालूम पड़ती है। क्योंकि-चिन्तामणि भी तो वांछित वस्तुओं का देने वाला होता है ॥२५॥ जिस देशमें पुरुषोंको-भ्रमर विलसित कमललोचनोंसे आनन्द की बढ़ाने वाली, पक्षियोंकी श्रेणियोंसे शोभित, निर्मलजलसे परिपूर्ण तथा जिनका सुन्दर आकार देखने योग्य है ऐसी सरसिये शोभती हैं तो समझिये कि देशकी उत्कृष्ट शोमा देखनेके लिये कौतूहल से प्रगट हुई पृथ्वी रूप कान्ता की आनन श्री है क्या?क्योंकि मुखश्री भी लोचनोंसे आनन्द देनेवाली दाँतोंकी पंक्तिसे विराजित, निर्मल, तथा देखने योग्य होती है ॥ २६-२७ ॥ संश्रितानां पशुधियः । प्रादायन्तं नगा यत्र क्षमाधारा: मुदर्शनाः ॥ २४ ॥ नदीमातृकसदेवमातृकक्षेत्रमंडिताः। चिंतामणीयते यत्र स्वरमान प्रदा नही | सरस्यो यन्त्र राजन्तै सालिवारिजलोचनैः । पुंसां प्रमोदकारिण्वो द्विजराजिविराजिताः ॥ २६॥ प्रवमा दर्शनीयाना धनयवा मुखाधियः । यदादा मुनमा हष्ट्र ऋतुकाला विजृम्भिताः ॥ २॥ युग्नम. -
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy