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________________ दमी उन्होंने तुम्हारे विषयमें न लिखकर दिगम्यरियोंक विषयमें क्यों लिखा ! तुम्हारे कथनानुसार तो दिगम्बर धर्मका उस समय सद्भाव भी न होना चाहिये ? फिर यह गोल माल क्यों हुआ। इसका उत्तर क्या दे सकते हो? तुम वराहमिहिरक इन वचनों को होते हुये यह कभी सिद्ध नहीं कर सकते कि दिगम्बर मत विक्रमकी दूसरी शताब्दिमें निकला है। किन्तु इतिहास बेचाओंकी दृष्टिम उल्ट तुम ही निरुत्तर कई जा सकोगे। कदाचित्कहो कि-फेबल नम शब्दके कहने मात्र दो दिगम्बर लोगोंका अस्तित्व सिद्ध नहीं होता है क्योंकि हम भी तो जिन कल्पक उपासक हैं। और जिन कल्प वालोंकी प्रवृचि नम रूप होती है। केवल कथन मात्रसे कहना कि-हम जिन कल्पके उपासक हैं और जिन कल्प नग्न होता है इससे कुछ उपयोग नहीं निकल सकता। साथ मेंखरूप भी वसाही होना चाहिये । और यदि यही या तो शिवभूति क्यों धुरा समझा गया ? अरे! जब तुम्हारा मतही श्वेताम्वर नाम से प्रसिद्ध है तो उसे नम कहना केवल उपहास कराना है।हमतों फिर भी फडंग कि-साधुलोग वास्तविक नग्न यदि संसारमें किसी मक्के होते हैं तो ये केवल दिगम्बरियोंके । बलादि से सर्वाङ्ग वेष्टित साधुओंको कोई नाम ' नहीं कहेगा यदि तुम अपना पक्ष सिद्धकरनेके लिये कहो मी तो यह बड़ा भारी आश्चर्य है ! दूसरे तुम्हारे ग्रन्थोंमें जब यह बात भी पाई जाती है कि "तीर्थकर देव भी सर्वथा अचेल नहीं होते किन्तु देव दूभ्य बन स्वीकार करते हैं" * तो तुम्हारे साघु नम हो यह कैसे माना जाय? यह बात साधारणसे साधारण मनुष्यस भी यदि पूछी नाय किदिगम्बर और श्वेताम्बरियोंके साधुओंमें ननसाधु कौन है ? तो वह भी दोनोंका खरूप देख कर झटसे कह देगा कि दिगम्बरियों के साधु नग्न होते हैं । इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि वराहमिहिरका बचन विक्रम महाराजके समयमें दिगम्बर धर्मका अस्तित्व सिद्ध इस विषयको श्रीआत्मारामजी साधुन अपने निर्माण किंय हुये तत्वीन. जयपादक ५४ ३ पत्रमें सीकार किया है। पाठक उस पुस्तझसे दस साले हैं।
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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