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________________ भद्रबाहु-चरित्रदोषोंसे स्त्रियोंको मोक्षकी संभावना नहीं मानी सकती! देखो! स्त्रियोंको चक्रवर्ति, नारायण, बलभद्र, मण्डलेश्वर आदि पद तथा श्रुतज्ञान, मनापर्ययज्ञान जब नहिं होते हैं, और उसीतरह गणधर, आचार्य, उपाध्याय आदि पद भी नहीं होते हैं तो उन्हींके त्रैलोक्य महनीय सर्वज्ञपनेका कैसे सद्भाव माना जाय ? इसलिये समझो कि-सुकुलमें पैदा हुआ, कुशल, संयमी, परिग्रह रहित तथा इन्द्रियोंका जीतने वाला पुरुष ही मुक्ति कान्ताके साथ परिणय कर सकता है । ९०-९४ ॥ ॥ इति स्त्री मुक्तिनिराकरणम् ॥ ___ जो मुर्ख लोग निग्रन्थ मार्गके बिना परिग्रहके सद्भावमें भी मनुष्यों को मोक्षका प्राप्त होना बताते हैं उनका कहना प्रमाण भुत नहीं हो सकता। यदि परिग्रहके होने परमी मोक्षका होना ठीक मान लिया जाये तो कहो कि भगवान आदिजिनेन्द्रने अपना प्रशस्त विद्यन्ते विहताः कापि प्रतिमाश्चनिगवत ॥९. ॥ पक्षहानिनं चेत्सन्ति सन्ति बदण्डिमास्सदम् । इति दोषद्वयावाप्ती न खाणां शिषसंभः ॥ ९ ॥ चक्रिकेशनरामाजमण्डलेशादिसत्पदम् । तथव श्रुतकैवल्यं मनापर्यययोधनम् ॥५१॥ गणेशसुप्र्यपाध्यायपदं स्त्रीणां मवेभ चेत् । फयं सर्वक्षता तासां जगत्पूज्या घटामटेन ॥१३॥ ॥ कुलीनः कुशलो धौर संयमी संगपर्मितः । निजिताक्षः पुमानेष वृणीते मुकिमामिनीम् ॥ ४॥ बीमुकिनिराकरणम् ॥ निर्घन्धमार्गमुत्सृज्य समन्यत्वेन ये जडाः । म्याचक्षन्ते शिवं नृणां तो न अयमंत् ॥५५॥ अमलेन निर्माणसाधनं यदि विद्यते । प्राज्यं राज्य कर्म
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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