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________________ भद्रबाहु-चरित्रपरन्तु वह कहना बुद्धिमानोंका नहीं है किन्तु विक्षिप्त पुरुषोंका केवल प्रलाप है । मुनियोंके आहार . करनेसे वीतरागताका अभाव नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उनमें केवल उपचार (कथनमात्र) से वीतरागता है कदाचित्कहो कि-आहारके विना शरीरकी स्थिति कहीं पर नहीं देखी जाती है इसीलिये केवली भगवानके आहारकी कल्पना अनुचित नहीं है ॥ ६७-७१ ॥ यह कथनमी अवाधित नहीं है। सोही स्फुट किया जाता है-नोकर्म आहार (१) कर्म आहार (२) कवला. हार (३) लेप. आहार (8) उजाहार (५) मानस आहार (६) ऐसे आहारके छह विकल्प हैं। तो अब यह कहो कि-शरीर धारियोंके शरीरको स्थितिका कारण कवलाहार ही है या और से भी शरीरकी स्थिति रह संकती है। हम लोग तो कर्मनोकर्म आहारके ग्रहणसे केवली भागवानके शरीरकी स्थिति मानते हैं । कदाचित्कहो कि-शरीरकी स्थिति कवलाहार ही से है तो पिणाम् । यसखोपचारेण वीतरागत्वकल्पना ॥ ॥ तस्थितिनवाजहार विना कापीह श्यते । केवलज्ञानिमितसादाहारो गृह्यतेऽनिशम् | नोकर्म की नामा च कवलो पनाम भाक् । उजश्व मानसाभार-आहारः पविधो मतः ॥७२॥ देहिनामेवमाहारसनुसंस्थितिकारणम् । सन्मध्ये कवलाहाराबन्यमाद्वा वस्थितिः avan . कमनोकर्मकाहारग्रहणादेहसंस्थितिः । मवेलेवलिना बैतत्सम्मतं नो मते स्फुटम् Prआहोस्मिल्कवस्त्रहारपूर्विकाहस्पितिर्मवत् । त्वयैवं कथ्यते तत्र संसिया
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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