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________________ तेम ज धमकार्योनुं वर्णन वधु चोक्साईवाळु होवानुं जणाय छे. अंतमां ग्रंथकार वस्तुपाळनी अने तेना दानकार्योनी योग्य शब्दोमां पुनः प्रशंसा करी, धर्माभ्युदय महाकाव्यनी फलश्रुतिमां कहे छे के-विश्वालंकृत करनार अने गुणरत्नोना भंडाररूप आ सुवर्ण रचित 'संघाधीश्वरचरित्र' सज्जन पुरुषोना हृदयमानसमां रहेलां दुरितोनो नाश करो. एवो आदेश आपी ग्रंथकर्ता विरमे छे. ११. उदयप्रभसूरि अने तेमना पूर्वाचार्यो ___ जे साधु पुरुषना पुनीत वचनामृतोथी पवित्र बनी, वस्तुपाळे महान दानधर्मो कर्या हता ते महानुभाव अने तेमना विद्वान शिष्य उदयप्रभसूरिनो, ते गच्छना पूर्वाचार्यो साथे ट्रंक परिचय आप्या सिवाय आ निबंध अपूर्ण ज लेखाय. तेथी तेमनी यथायोग्य पिछान आपवा अहीं प्रयत्न कर्यो छे. आ ग्रंथना रचयिता मुनिवर्य उदयप्रभसूरि सुप्रसिद्ध नागेन्द्रगच्छना हता. तेमणे पोताना गच्छनो पूर्वपरिचय आपतां कर्तुं छे के 'नागेन्द्रगच्छ मां शांतिसुधाना कलशसमान अने संसारद्रुमोन्मूलन तत्त्वादेश आपनार महेन्द्रसूरि थया. तेमना पट्टधर श्रीशांतिसूरि थया जेमणे दिगंबरो उपर विजय मेळव्यो हतो. तेमना पछी नागेन्द्रगच्छसिंहासनाधिरूढ शमदमने धारण करनार आनंदसूरि अने अमरचंद्रसूरि थया. वादिचक्रवर्ती आ बन्ने सूरिओए सिद्धराजनी राजसभामा वादीओने परास्त कर्या हता. तेथी राजाधिराज सिद्धराजे ते बन्नेने 'व्याघ्रशिशुक' अने 'सिंहशिशुक' बिरुदो आप्यां हतां.१ उदयप्रभसूरि अने तेमना पूर्वाचार्योनो आवो ज परिचय सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी अने सुकृतसंकीर्तनमां आपवामां आव्यो छे.२ आ ज अमरचद्रे 'सिद्धांतार्णव' नामक महाग्रन्थ रच्यो हतो एवं अनुमान छे. कारण तत्त्वचिंतामणिमां तार्किक गंगेश उपाध्याये सिंहव्याघ्र लक्षणो मूक्यां छे जे आ बन्ने माटे हशे एम डॉ. सतीशचंद्र विद्याभूषण माने छे.३ तेमनी पछी धर्मगादी उपर श्रीहरिभद्रसूरि आरूढ थया जे सच्चारित्र अने बीजा प्रशस्य गुणोने लई 'कलिकालगौतम' बिरुदथी ख्यातकीर्ति थया. तेमना शिष्य विजयसेनसरि थया जे अगणित गुणोना भंडार समान अने व्याख्यान वाचस्पति हता. तेमना सद्धर्मप्रेरक व्याख्यानो मानवहृदयने सचोट असर करतां. तेमनी पुनीत पावन व्याख्यानगंगा 'वनराजविहार' तीर्थरूप १. अस्ताघवाङ्मयपयोनिधिमन्दराद्रिमुद्राजुषोः किमनयोः स्तुमहे महिम्नः । बाल्येऽपि निर्दलितवादिगजौ जगाद यौ व्याघ्र-सिंहशिशुकाविति सिद्धराजः ॥४॥ -धर्माभ्युदयकाव्य अंत्यप्रशस्ति । २. (१) सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी, श्लोक, १५४ (गा. ओ. सी. ना हमीरमदमर्दन नाटक साथे छपायेल) (२) शैशवेऽपि मदमत्तवादविद्दारवारणनिवारणक्षमौ । यौ जगाद जयसिंहभूपतिर्वाघ्रिसिंहशिशुकाविति स्वयम् ।।२०।-सुकृतसंकीर्तन, सर्ग ४ ३. जुओ 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त' इतिहास पा. २५०.
SR No.009540
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages515
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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